
मोबाइल फोन के अलार्म की कानों को चुभती आवाज़ तेज होती जा रही थी । ”अरे… अभी तो इस कमबख्त को चुप कराया था ।” मन ही मन अपने आप से बुदबुदाते हुए फोन को हाथ बढ़ा खींच लिया । वैसे तो आँखों में नींद ऐसी कुछ खास नहीं थी लेकिन weekend के खत्म होने का दुःख और सोमवार के प्रति आलसी रवैया मुझे चादर से बहार निकलने नहीं दे रहा था । अलार्म को swipe थोड़ी देर के लिए मैंने चुप करा दिया । आह… अलार्म के बंद होने के बाद की शांति कितनी सुखद थी । मैंने चादर को ऊपर तक खींच हल्की ठंडी सुबह से कुछ गरमाहट और चुरा ली । लेकिन… ऑफिस… झटके से आँख खोल फोन को हाथ में ले उसका बटन दबाया । “पौने नौ… shit man…आज फिर से लेट हो गया ।” सुबह उठने के लिए कल मैंने 8 बजे से शुरू कर हर 10 मिनट के अंतराल पर अलार्म लगाये थे । मतलब 5 अलार्म अब तक मेरे हाथों शहीद हो चुके थे । ये साला Netflix पर रात को web series देखते-देखते 3 कब बज गए पता ही नहीं चला । weekend पर करने के लिए कितना कुछ सोचा था लेकिन न तो वो कुछ हुआ और और ऊपर से weekdays की भी ऐसी शुरुआत । अब आज फिर से वही बिना धुले कपड़े और breakfast के नाम पर ऑफिस की सड़ी सी कॉफी । अपने आप से कुछ खिन्न हो चादर को एक तरफ पटक मैं बाथरूम की तरफ हो लिया ।
जल्दी से ब्रश कर दो मग पानी अपने ऊपर उड़ेल लिया । धुलने के लिए रखे उस कपड़ों के ढेर से एक जींस और ठीक ठाक सी दिखती टी-शर्ट को पहन उसे deodorant से महका दिया । फिर शू-रैक से जूते निकाल सोफे पर बैठ गया । तभी याद आया “मोज़े… shit सारे मोज़े तो पानी में पड़े हैं ।” जूते में पड़े मोजों को एक बार सूंघ कर देखा । “यक्क… बहुत बदबू मार रहे हैं ।” कोई और उपाय न सूझता देख मोजों को वापस रैक में पटक बिना उनके ही जूते पहन लिए । Record 17 मिनट में तैयार हो ऑफिस का tag गले में डाल key chest से बाइक की चाभी उठा ली । वहीँ विवेकानंद जी का वो पोस्टर भी लगा हुआ था “Arise… Awake… and stop not till the goal is achieved ।” यूँ तो इस पोस्टर को दीवार पर लगे महीनों हो गए थे लेकिन आज खुद पर आती झुंझलाहट के बीच ये वाक्य तंज की तरह चुभ गया । Seriously यार… न मैं कुछ कर रहा हूँ और न जिंदगी में कोई goal है । बस motivational किताबें पढ़ लेता हूँ । उस समय तो खून खौल जाता है । लेकिन बाद में फिर सब फुस्स । पिछले हफ्ते भी तो किसी किताब में पढ़ा था “ If you wouldn’t act for change in your life then who will??? And if it’s not now then when? ” उस समय तो बात बड़ी अच्छी लगी थी । अपना WhatsApp status भी बना लिया था मैंने तो । लेकिन फिर उसी status की तरह इस बात पर अमल करने का जूनून भी 24 घंटे में काफूर हो गया । “ जो हुआ सो हुआ लेकिन change की नयी शुरुआत आज से होगी “ अपने आप को motivate करते हुए मैंने बाइक स्टार्ट कर ली ।

ऑफिस पहुचने तक बदलाव के उस जोश को मैंने ठंडा नहीं होने दिया था । कॉफी मशीन की तरफ जाने बजाय सीधे अपने cubical में पहुँच मैंने बैग कुर्सी पर पटका और मोबाईल फोन में task लिस्ट बनाने की App खोल ली । थोड़ी देर सोचने के बाद नयी टास्क लिस्ट को एक title दिया “First Step For Change” । Title तो final हो गया लेकिन अब आगे क्या ? दिमाग के घोड़े दौडाने शुरू कर दिए । “ कुछ नया करना है तो सबसे पहले फालतू के time consuming कामों को बंद करना पड़ेगा “ दिमाग में ये ख़याल आते ही सबसे पहले task लिखा
“Message करो”…”Reply भेजो”…”Forwarded वीडियो और लंबे-लंबे Message” साला इन सब चीजों में ही कितना समय बेकार कर देता हूँ मैं । वो एक joke था न “ WhatsApp is like diaper । कुछ हो या न हो लेकिन चेक बार-बार करते रहते हैं ।” बिलकुल सही बात कही है । पूरे दिन distract करने वाला ये WhatsApp इसलिए लिस्ट में मेरा सबसे पहला target था । उसके बाद मेरा अगला निशाना था
- Chai-Sutta Break
टपरी पर खड़े-खड़े बातों में काफी टाइम निकल जाता है । साथ ही सबके साथ में 1-2 सिगरेट भी हो जाती हैं । ऊपर से आजकल तो ऐसे 3-4 break हो जाते हैं । वहाँ जो टाइम waste होता है उसे compensate करने के लिए फिर देर शाम तक ऑफिस में रुको । ये सब भी बंद आज से । और हाँ… अंकित ने जब से Netflix के credentials दिए हैं तब से फोन की बैटरी और घर पर टाइम कहाँ drain हो जाता है पता ही नहीं लगता । तो list में अगला नाम आया
- Netflix
वैसे तो मेरे समय के खून पीने वाले कुछ और task भी थे लेकिन फिर सोचा आज के आक्रमण की शुरुआत के लिए इतना ही बहुत है । List को दुबारा से एक बार देखा
- Chai-Sutta Break
- Netflix
युद्ध की रणनीति तैयार हो चुकी थी । अब बारी थी पहले मोर्चे पर धावा बोलने की । WhatsApp !!! पहले सोचा अकाउंट ही delete कर देता हूँ । लेकिन… सच कहूँ तो हिम्मत नहीं हुयी । “ बहुत dependency है यार इस पर तो । इसे delete नहीं कर सकता । वैसे भी गलती technology की नहीं बल्कि उपयोग की होती है ।” खुद की बनायी इन दलीलों से मैंने WhatsApp delete करने के अपने ही फैसले को रद्द करवा दिया । तो अब निशाना साधा गया WhatsApp groups पर । “हम-लोग”, “कुटुंब”, “Crazy cousins”, “Bangalore Parivaar” … घर परिवार और रिश्तेद्दारी के मिलाकर ही कुछ 8 group बने हुए हैं । उमंग की शादी को 7 महीने हो चुके हैं लेकिन “Umang’s Wedding” group आज भी active है । फिर दोस्ती यारी भी तो कुछ कम नहीं है । School, College, Training, Coaching सबकी यादें ताज़ा रखने के लिए group बने हुए हैं । और इनमें सबसे महान ग्रुप है “सख्त लौंडे” जहां आये दिन अपनी जिंदगी का दुखड़ा सुनाता कोई दिख जाता है । List अभी खत्म कहाँ हुयी है । “office-official”, office-personal”, “Team-verification” । पूरे दिन इन groups में वही good morning, motivation quotes, birthday wishes, jokes और fake news के message चलते रहते हैं । कभी इन groups में लोगों के झूठे अहं के बीच लड़ाई हो जाती है तो कभी political अंधभक्ति का दरिया बहने लगता है । माना काम के message भी आते हैं लेकिन वो ऐसे जान पड़ते हैं जैसे समुद्र में फेंका गया पत्थर । एक बार जो miss हो गया तो ढूँढना मुश्किल । Groups को silent करना मुझे समस्या का हल जान नहीं पड़ा तो मन को कठोर कर सारे unwanted और redundant groups से मैंने exit कर दिया ।
जैसा कि अपेक्षित था, प्रतिक्रियाओं की बाढ़ सी आ गयी ।
“ क्या हुआ बेटा ? all ok…”
“अबे साले बंदी मिल गयी क्या जो दोस्तों को bye-bye “
“मुझे पहले से ही शक था…company switch कर रहा है न तू”
“ भाई एक साथ सारे groups से exit…सन्यासी बन रहा है क्या J “
अलग-अलग groups से exit करने की अलग-अलग प्रतिक्रियाएं । लेकिन मैंने किसी message का reply नहीं किया । फोन को अपने से थोडा दूर रख दिया । अंदर से एक सुकून महसूस हो रहा था । ऐसा लगा कि परिवर्तन की इस लंबी लड़ाई का पहला किला फ़तेह कर लिया हो । आँखें बंद और होठों पर हल्की सी मुस्कान थी कि तभी… Vibration mode पर रखा घनघनाता हुआ फोन टेबल पर हिल रहा था । पापा का फोन था ।

“हेलो…कैसा है बेटा?”
“ हाँ पापा । प्रणाम…सब अच्छा है ।”
“और…ऑफिस पहुँच गया”
“हाँ जी…9 बजे ही आ गया था ऑफिस तो ।”
“very good… अच्छा बेटा वो अपने “कुटुंब” वाले group में दिखा रहा है कि “Gattu left the group”…क्या हुआ?”
“हाँ पापा वो exit कर दिया है मैंने उस group से । एक मिनट… आपने मेरा नंबर गट्टू नाम से save कर रखा है । पापा आपको पता है न इस नाम से मुझे कितनी नफरत है ।”
“ अरे बेटा वो तो बस… गट्टू नाम में जो अपनापन है न वो अमन में कहाँ । लेकिन बात मत बदल । Group से exit क्यूँ करा?”
अब पापा को क्या बोलूँ । थोड़ी देर शांत रहने के बाद
“पापा वो फोन की मेमोरी कम पड़ रही थी तो WhatsApp के कुछ groups exit कर दिए”
सोचा पापा को समझाने के लिए मेरी ये झूठी technical दलील काम कर जायेगी । लेकिन… पापा तो पापा हैं
“ मेमोरी कम पड़ रही थी… हाँ तो मेरे फोन में भी हो जाती है बेटा कभी-कभी । पुराने फोटो और वीडियो delete कर देता वरना एक चिप लगवा ले अलग से । मैंने भी लगवा रखी है अपने फोन में । अब कोई दिक्कत नहीं होती । तू तो सोफ्टवेयर वाला है । ये सब तो पता ही होगा ।”
मेरे झूठ का कोई असर ना होता देख अब मैंने सच्चाई का सहारा लिया
“ पापा उस group के अधिकतर लोगों से मैं मिला भी नहीं हूँ । मिलना तो छोडो , मैं उनसे अपना रिश्ता तक ठीक से नहीं जानता । अभी कुछ दिन पहले ही haapy birthday मौसाजी की जगह happy birthday चाचाजी लिख दिया था । मजाक अलग बनी थी ऊपर से आपकी भी सुननी पड़ी । फालतू की सिरदर्दी है ।”
“फालतू… रिश्तेदारी अब तुझे फालतू लगने लगी है । याद नहीं तेरे प्रमोशन की बात जब मैंने ग्रुप पर बताई थी तो सबने तालियों और thumbs up वाले मेसेज कितने प्यार से डाले थे । तुझे अपनों का ये प्यार फालतू लगता है ।”
जबरदस्ती का उदाहरण दे पापा अब मुझे irritate कर रहे थे ।
“अरे पापा अपने family वाले group “हम-लोग” से तो exit नहीं करा ना । सारे नजदीकी रिश्तेदार हैं उसमें । बाकी सब की क्या जरूरत?”
“जरूरत… मतलब रिश्ते क्या जरूरत के लिए होते हैं? हाँ भाई तुम आजकल की generation को जरूरत की भाषा के अलावा कुछ और समझ आता ही कहाँ है । अगर सामने वाले से काम है तो वो अपना वरना मैं कौन और तू कौन । वैसे देख रहा हूँ कि बंगलौर जाने के बाद unsocial होता जा रहा है ।”
“कुछ भी…ऐसा कुछ नहीं है पापा” मैंने झल्लाकर कहा ।
“ऐसा ही है बेटा…ऐसा ही है…आज तुझे रिश्तेदारों की जरूरत नहीं । कल को शादी के बाद बोलेगा माँ-बाप की भी क्या जरूरत । फिर तो हमें भी WhatsApp पर block कर देगा ।”
पापा से बहस करने की मुझमें और ताकत नहीं थी । पापा के blackmail के आगे मैंने हार मान ली ।
“क्या पापा…बात को कहाँ से कहाँ घुमा ले जाते हो । सब अपने मन से सोच कर दूसरों पर तोहमत लगा देते हो । अच्छा ठीक है group में किसी से बोल देना कि मुझे मुझे फिर से add कर दें । अब ठीक है ।”
“चल फिर रज्जो दीदी को बोल दूँगा । वो add कर देंगी । अच्छा सुन… रज्जो बुआ को एक thanks वाला message भेज दियो । नमस्ते वाला emoji भी लगा देना साथ में ।” पापा की बोली में उनकी जीत का उत्साह छलक रहा था ।
“जी पापा…रखता हूँ” कह मैंने फोन काट दिया ।
WhatsApp पर 38 message आये हुए थे । जिन 11 groups से मैंने exit किया था उसमें से 8 groups में मुझे वापस add कर दिया गया था । अब किसी और से प्रतिरोध करने की मुझमें हिम्मत नहीं थी । कुछ देर पहले जीती हुयी जंग अब मैं हार चुका था ।
“Tea???” office-gossip group में अंकित का message था ।
मेरी task लिस्ट का दूसरा शिकार अब मुझे घूर कर देख रहा था । पहले सोचा मना कर देता हूँ लेकिन सिर दर्द के मारे फट रहा था । कुछ खाया भी नहीं था । मैंने message के नीचे thumbs up का reply कर दिया । बैग से सिगरेट का पैकेट निकाल जेब में रख लिया । “आज एक बार चला जाता हूँ । कल से नहीं जाऊंगा । हाँ पर आज से Netflix तो पक्के से बंद” अपने आप को दिलासा देते हुए मैंने रज्जो बुआ को पापा के कहे अनुसार मेसेज लिखा और लिफ्ट की तरफ चल दिया ।
All are true lines and related to real life, good work
Keep it up.
This reminds me “Jitu” and his father’s conversation on youtube 🙂
To be frank. They were in the mind when writing that conversation
That’s is so true….
Is seems to be the story….of most bachelor’s….so true