बदलते रिश्ते

दोनों सब्जियां और रायता तैयार हो चुके थे । रोटियों के लिए आटा भी लगा कर रख दिया था । एक बार फिर सरसरी नज़र से तैयारियों का जायजा लिया । “ चलो लगभग सब काम खत्म हो गया ” मन ही मन सोचते हुए घड़ी की तरफ देखा । सबके आने में टाइम अभी बाकी था । कुछ और काम न देख मैं दो मिनट सुस्ताने के लिए सोफे में धँस कर बैठ गयी । A.C. की ठंडी हवा और स्वछंद मन मुझे पुरानी यादों की ओर उड़ा ले गए । अतीत की उन बातों की ओर मुड़कर देखा तो कल की ही सी बात लग रही थी ।

पापा जोर- जोर से आवाज़ दे कर बुला रहे थे “ रानी…रानी इधर आ बेटा “I थोड़ी देर तक तो मैं अनसुना करती रही लेकिन बार बार बुलाने पर टी.वी. देखना छोड़ गुस्से में पैर पटकते हुए पापा के पास पहुँची “ क्या है पापा ? क्यूँ बुला रहे हो ? सारे कामों के लिए बस रानी याद आती है… छोटे से तो किसी काम की बोलते नहीं ?” इस से पहले मैं कुछ और बडबडाती, पापा ने एक पैकेट मेरे हाथ में थमा दिया “अब तेरी मनपसंद गर्मा-गर्म जलेबियाँ लाया हूँ तो तुझे ही बुलाऊंगा न ” । पापा के हँसते हुए जवाब और जलेबी की बात सुन मुँह में घुली उस मिठास ने मेरा गुस्सा काफूर कर दिया । “ओए लकी…जल्दी आ… पापा जलेबियाँ लाये हैं ।” मुस्कुराते हुए मैंने छोटे को आवाज़ लगायी जो अभी भी टी.वी. से चिपका पड़ा था । मम्मी के जलेबी प्लेट में निकालते ही हम दोनों उन पर टूट पड़े । अभी पहली जलेबी मुँह के अंदर जाने की तैयारी में ही थी कि दरवाज़े की घंटी बज पड़ी । मम्मी ने मुझे देखा और मैंने लकी की ओर । जलेबी को यूँ छोड़ कर जाने का मन नहीं था । मेरे और लकी के बीच दरवाज़ा खोलने को लेकर बहस होती देख आखिरकार मम्मी गुस्से में उठकर दरवाज़े की ओर चल दी ।   

“अरे जीजी…प्रणाम । खबर कर दी होती तो ये आ जाते लेने । खुश रहो बच्चों…जय श्री कृष्णा । कैसे हो तुम दोनों?” दरवाज़े के पास से आती इन आवाजों को सुनकर हम भी बाहर आ गए । बुआ जी आयीं थी । पिंकी और लड्डू भी साथ थे । बुआ का सामान कमरे में रख हम सब लोग ड्राइंग रूम में ही बैठ गए । टेबल पर रखी वो जलेबियाँ अब कुछ ठंडी हो चुकी थी और हिस्सेदारों की संख्या भी बढ़ चुकी थी । मम्मी ने हम बच्चों और बुआ के बीच जलेबियों को बराबर बराबर बाँट दिया । जलेबी के हाथ से जाने का मलाल जरूर था लेकिन उस से ज्यादा खुशी थी पिंकी और लड्डू के आने की । बातों बातों में बुआ से पता लगा कि फूफाजी को ऑफिस का कुछ काम है और शाम तक वो भी आ जायेंगे ।

थोड़ी देर बात करने के बाद मम्मी और बुआ शाम के खाने की तैयारी में किचिन में लग गए । हम चारों बच्चे खेलने में मस्त हो गए । बचपन के वो खेल और एक दुसरे का रूठना और मानना । इन सब में शाम कब हो गयी पता ही नहीं चला । फूफाजी आ गए थे और अपने साथ लाये थे ढेर सारे आम । पानी की बाल्टी में डूबे उन आमों को देख कर मन ललचा रहा था पर मम्मी ने कहा कि पहले सब खाना खायेंगे और उसके बाद आम । हम सारे बच्चे जल्दी जल्दी खाना खत्म कर आम कटने के इन्तेज़ार में अन्ताक्षरी खेलने लगे । मम्मी और बुआ ने आखिर में खाना खाने के बाद आम काटे । सब के साथ यूँ आम खाने का मज़ा आ गया था । लड्डू, जो सबसे छोटा था, के तो सारे कपडे ही आम में हो गए थे । उसकी हालत देख सबकी हंसी छूट पड़ी ।

दरवाज़े की घंटी की आवाज़ ने मुझे अतीत की यादों से वापस वर्त्तमान में ला दिया । 20 साल बाद आज हम सब लोग फिर एक साथ मिलने वाले हैं । लकी की अगले महीने शादी होने वाली है । पिंकी की शादी हुए 2 साल हो चुके है और अब वो नागपुर में रहती है । लड्डू अमेरिका में पढाई करने के बाद वहीं जॉब करने लगा । पापा और फूफाजी भी काम के सिलसिले में अक्सर बाहर ही रहते हैं । मतलब सब अपनी दुनिया में व्यस्त । ऐसे में आज के get together को लेकर में काफी उत्साहित थी । बचपन के उन पलों को फिर एक बार जीयेंगे । रज्जो दीदी दरवाज़े पर थी । उन्हें लिस्ट थमाते हुए मैंने बताया “ सब्जियां मैंने बना दी हैं बाकी का काम देख लेना । और हाँ… सामान किचिन में रखा है, लिस्ट से एक बार चैक कर लेना ।”

रज्जो दीदी किचिन में लग गयी और मैंने हाथ मुँह धो कपडे चेंज कर लिए । सबसे मिलने की खुशी में आज ऑफिस से मैंने छुट्टी ले ली थी । थोड़ी देर में एक-एक करके सब लोग आ गए । एक दूसरे की कुशलक्षेम पूछने के बाद बुआ लड्डू की नयी जॉब की तारीफें करने में लग गयी तो वहीं फूफाजी भी ऑफिस और अपनी कामयाबी के किस्से बखानने लगे । यह सब सुन मम्मी भी कहाँ पीछे रहने वाली थी । मेरे बच्चे, मेरा ऑफिस, घर, कार यहाँ तक की किट्टी पार्टी का भी महिमामंडन चल रहा था । उधर पिंकी से उसके पति का गुणगान सुनते सुनते मैं पक गयी । जाने क्यूँ ऐसा लग रहा था जैसे कामयाबी और खुशी का दिखावा करने की एक जंग सी चल रही थी ।

ये सब बंद न होता देख मैंने रज्जो दीदी को खाना लगाने को बोल दिया । कहने को सब लोग डाइनिंग टेबल पर साथ थे लेकिन अपने-अपने मोबाईल में घुसे हुए । लड्डू तो किसी का फोन आने पर अपनी प्लेट ही लेकर कमरे में चला गया । दो-चार बार उन पुरानी यादों को तारोताज़ा करने की मैंने कोशिश जरूर की लेकिन जवाबों के रूखेपन ने वो सिलसिला भी ज्यादा देर नहीं चलने दिया । मोबाईल फोन और अपनी संकुचित सी दुनिया में खोये सब खाना खाने के बाद अपना अपना गुलाब जामुन ले टेबल से उठ लिए । मेहनत और प्यार को धीमी आंच में पकाकर बनायीं मेरी सब्जियों की किसी ने झूठे मुँह भी तारीफ न की ।

रिश्तों के इस बदलाव को देख मैं हैरान थी । वो एक साथ एक ही प्लेट में टूटकर खाना खाने वाले बच्चे आज अलग अलग से दिखाई दे रहे थे । बचपन में जहाँ बिना किसी बात के घंटो बातें और हंसी ठिठोली होती थी आज वहीं बातों का जैसे अकाल पड़ गया हो । माना समय के साथ बढती जिम्मेदारियों और कामयाबी की इस दौड़ में रिश्तों का दायरा कम होता चला जा रहा है । लेकिन कहीं ये दौड़ हमें असली खुशियों से दूर तो नहीं ले जा रही । पहले मिलने के बहाने ढूँढा करते थे लेकिन आज सामने होकर भी सब मोबाइल और इन्टरनेट के इर्द गिर्द बनी अपनी खोखली दुनिया में व्यस्त थे । शायद धीरे धीरे हम इस दुनिया में इस कदर लीन हुए जा रहे हैं कि सामने अकेलेपन का वो अँधेरा कुआं भी दिखाई नहीं दे रहा । खैर मेरी इस सोच से इतर सब जाने की जल्दबाजी में थे । रज्जो दीदी भी डाइनिंग टेबल से सबके बर्तन समेट चुकी थी । 

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11 Comments

    • Avatar Rahul arya

      यह है हम सब की कहानी। पैसे और टेक्नालोजी ने काफ़ी रिश्ते तोड़ दिए ।कटू सत्य है के ख़ुशी ख़रीदी नहीं जा सकती। मजा सबके साथ आता है ।

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  1. Avatar Anitt S Bhatnagar

    Very well said Neha, you got the right chord of the society that we are living in. Very beautifully written it was as if I was reliving my childhood days.
    Keep it up, hope to see some more amazing work from you

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  2. Avatar Tammana

    Aaj ki Vastvikata k aadhar par kahani …… Padh k esa laga maano apne saath hi biti hui chije h………. Bilkul jivant kahani h…… Bahut Badhiya Neha ji…….

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  3. Avatar Panne Lal Kanojiya

    An excellent way of explaining the truth about present scenario, howz the relation getting diluted due to IOT(Internet of things).It is well appriciated for heart touching story. All the best Neha…keep it up.

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