भगवान का कण

[“४ जुलाई की तिथि वैसे तो इतिहास में अमेरिका के स्वतंत्रता दिवस के रूप में दर्ज है किन्तु ४ जुलाई २०१२ को हुयी एक विशेष वैज्ञानिक खोज ‘हिक्स बोसोन या God’s Particle’ के बाद संभव है कि इतिहास की प्राथमिकता बदल जाए”]

४ जुलाई को ऑफिस में कार्यविहीन, कुर्सीतोड़ परिश्रम के बाद जब मैं घर पंहुचा तो कुछ अजब ही नज़ारा देखने को मिला । सास बहू सीरियल की अनन्य भक्त, मेरी श्रीमतीजी, आँखों में श्रद्धा भाव लिए, समाचार चैनल देख रही थी । वैसे वो समाचार चैनल अपनी ऊलजुलूल और मसालेदार ख़बरों के लिए प्रसिद्ध था फिर भी श्रीमतीजी और समाचार… बात कुछ हजम नहीं हुयी । ब्रेकिंग न्यूज़ के नाम पर किसी ‘भगवान के कण’ की चर्चा चल रही थी । श्रीमतीजी की आँखों में उमड़ते श्रद्धा भाव को देख कर प्रथम द्रष्टया तो मुझे लगा कि शायद फिर कहीं कोई मूर्ती जमीन से अवतरित हुयी होगी… या फिर गणेश जी से मिलती जुलती कोई फल/सब्जी किसी बाग से मिल गई होगी । हमारे देश में धर्मं से जुडी भावनाएं छोटी-छोटी चीज़ों से ही जाग्रत हो जाती हैं । फिर भी मेरे किसी नतीजे पर पहुँचने से पहले अपनी तथाकथित समझदारी और विद्वत्ता का मान रखते हुए पूरी खबर सुनने के लिए मैं थोड़ा रुक गया । पता चला यह खबर तो यूरोप में हुयी किसी खोज से संबंधित है । लो जी… बैचैन दिल में फिर से एक सवाल उठ गया । भारत में इतने सारे धर्म स्थलों और श्रद्धालुओं (या कहें काफी हद तक अंध श्रद्धालुओं) के होते हुए भगवान को यूरोप जाने की क्या जरूरत पड़ गई । थोड़ा और सुना तो पता लगा कि वैज्ञानिकों ने यूरोप की एक बहुत बड़ी प्रयोगशाला में एक आधारभूत कण की खोज की है । इसी कण को ‘भगवान के कण’ की संज्ञा दी जा रही है  ।

            वैज्ञानिक प्रयोग में भगवान की उपस्थिति !!! बात कुछ समझ नहीं आई  । अन्य समाचार चैनलों पर भी बदल बदल कर देखा तो पाया भगवान के इस कण कि चर्चा हर तरफ थी और विभिन्न लोग अपनी-अपनी तरह से इस कण और इसके संभावित परिणामों की व्याख्या करने में लगे हुए थे । ऐसा लग रहा था कि जैसे जैसे साक्षात भगवान का कोई चमत्कारिक आशीर्वाद वैज्ञानिकों कि झोली में आ गिरा हो । आप इसे विषय की क्लिष्ठता कहें या मेरी समझदारी की सीमा, बात पूरी तरह मेरे पल्ले पड़ी नहीं । फिर मैंने सोचा छोडो यार, मुझे क्या फर्क पड़ता है इन सब से । अपनी जिंदगी में फैला रायता ही सही से समेट लूं यही बहुत है । लेकिन ये सोचना शायद मेरी भूल थी । अगले ही पल श्रीमतीजी ने क्रोध और आहत मिश्रित भाव के साथ मुझ पर सवाल दाग दिया “क्यों जी…इतना पूजा-पाठ, हवन, यज्ञ सब करें हम और भगवान का कण मिले विदेशियों को । वो मरे तो एक नंबर के नास्तिक होते हैं । ये तो ऐसे हो गया कि बिजली का बिल मेरा और ए. सी. के आराम पड़ोसियों को” । भगवान पर अपना स्वामित्व समझने वाले एक आम भारतीय का भगवान के अपने हाथ से निकल जाने का मलाल श्रीमतीजी के चेहरे पर साफ़ दिखाई दे रहा था ।

मैंने अपने अल्पज्ञान के बावजूद, एक पढ़े लिखे और समझदार पति की छवि को बनाये रखने खातिर, उन्हें समझाते हुए बोला ”यह कण कोई भगवान का आशीर्वाद नहीं बल्कि कई करोड़ों रूपये खर्च कर दस साल से ज्यादा समय से चल रहे प्रयोग का नतीजा है ” । मेरी बात पूरी तरह सुने बिना श्रीमतीजी बबक पड़ी “करोड़ों रूपये!!! मतलब भगवान पैसों में तोले जा रहे हैं । अरे भगवान पैसों के नहीं श्रद्धा के भूखे होते हैं । अगर रूपये खर्च करने से ही भगवान मिलते तो उनसे मिलने का appointment टाटा-अंबानी के हाथ में न होता । ”

पहली नाकाम कोशिश के बावजूद मैंने दुबारा समझाने का प्रयास किया “ऐसा नहीं है । वैज्ञानिक प्रयोग में मिला यह कण ब्रह्मांड में उपस्थित सभी वस्तुओं के मूल में है और इससे हमें ब्रह्मांड की उत्तपत्ति का रहस्य समझने में मदद मिलेगी ” मुझे लगा शायद बात यहीं खत्म हो जायेगी लेकिन ये मेरी दूसरी गलती थी । ” लो जी… इसमें कौन सी नयी बात बता दी इन वैज्ञानिकों ने । हमें तो बचपन से ही सिखाया जाता है कि कण कण में भगवान है और हम सब इसी से बने हैं । ” मेरे कथन पर हँसते हुए श्रीमतीजी ने बोला ।

            अब मुझे झुंझलाहट आ रही थी । शायद गलती पत्नी की नहीं बल्कि मेरे समझाने के तरीके में थी । इसीलिये अपने आपको संयत करते हुए मैंने आखिरी कोशिश की “ये सब धार्मिक बातें और विश्वास अपनी जगह हैं । खोज में मिले इस कण का धर्म और भगवान से कोई लेना देना नहीं है । यह  कण उत्पत्ति से संबंधित रहस्य समझने का एक अहम जरिया है । साथ ही संभव है कि उसके उपयोग से भविष्य में कुछ चमत्कारिक परिणाम भी मिल सकते हैं ” । ‘भगवान के कण’ में भगवान को अस्तित्व विहीन पा कर श्रीमतीजी थोड़ा उदास हो गई परन्तु इस कण के उपयोग से एक बेहतर भविष्य की आस लिए हुए पूछा ”तो क्या इस कण के उपयोग से से कोई भी बीमारी लाइलाज नहीं रहेगी? या पीने को खूब सारा साफ़ पानी मिल जाएगा? अच्छा महंगाई । तो कम हो ही जायेगी न? ”

            शायद आम लोगों की जिंदगी में चमत्कार का मतलब यही होता है  । किन्तु इन सवालों के जवाब देना किसी के लिए भी जल्दबाजी थी । मुझे अनुत्तरित देख वो चाय बनाने के लिए किचिन में चली गई और मैं फिर से समाचार चैनलों पर ‘भगवान के कण’ का महिमा भजन सुनने लगा ।  

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3 Comments

    • Avatar Swati

      Wah Wah..bahut badhiya kahani..mujhe toh ekpal asa laga srimatiji main aur samjhanewale mere papa.. bachpan me ase hi unse puchti rehti thi aur last mein baat rahasyamayi jawab se hi khatam hoti thi

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