Technology Day

हेलमेट पहनकर स्कूटर पर अभी बैठा ही था कि अन्नू की चीखती हुई आवाज़ आई  “भईईईय्या…  एक मिनट रुको ” । अंधविश्वास को लेकर अक्सर माँ और बाबूजी का मज़ाक उड़ाने वाले मुझ जैसे तथाकथित पढ़े लिखे व्यक्ति को जाने क्यों आज अन्नू का यूँ पीछे से टोकना बुरा लग गया । आँफिस में आज का दिन मेरे लिए कुछ ख़ास था और इसी कारण से  दिल में डर सा बैठ गया। “पीछे से ऐसे टोक दिया ….. अब कहीं कुछ गलत न हो जाए” दिमाग में जगह बना रहे इस डर के आवेश में आ मैं अन्नू पर चिल्ला पड़ा “क्या है?… आँफिस जाते समय ऐसे पीछे से चिल्लाते हुए टोकना ज़रूरी है ? थोड़ी बहुत अकल है तुझमे या नहीं ?” शायद मुझे ऐसे गुस्से में देख अन्नू डर गई । कदम पीछे खींचते हुए दबी जबान से “सॉरी” बोल वो वापिस घर की तरफ़ जाने लगी । भरे हुए गले से बोले गए उस ”सॉरी” ने मुझे अपनी गलती का एहसास करा दिया । “अरे रुक तो सही… सुन… अच्छा बाबा I am sorry” खुद को संयमित करते हुए मैंने बोला । अन्नू रुक तो गई पर मोम की गुड़िया की भांति एक दम चुप खड़ी थी । “अब बोलेगी भी कि क्या काम था या ऐसे ही मुँह कुप्पा कर खड़ी रहेगी ?” उसे छेड़ते हुए मैंने पूछा । हम भाई-बहन का यूँ रूठना मनाना रोज़ का काम है और अक्सर उसकी ज़िद के आगे मुझे ही झुकना पड़ जाता है । क्या करूँ लाडली छोटी बहन जो ठहरी । वैसे आज गरज उसकी थी तो फ़ौरन अपनी चुप्पी  तोड़ते हुए वो बोली “भईया विश्विद्यालय में एडमिशन के लिए आज चालान भरने की आखिरी तारीख है तो आप जाते हुए मुझे बैंक ड्रॉप कर दोगे क्या ?” काम को आखिर तक टालने की कुछ आदत सी बन गई है हमारी पीढ़ी की और अन्नू तो काम टालने की चैम्पियन है । हमेशा आखिरी दिन ही याद आती है इसे काम करने की । जो भी हो पर काम उसका ज़रूरी था लेकिन बैंक ड्रॉप करने में मुझे आँफिस के लिए पक्का देर हो जाएगा ।  अभी इसी उधेड़बुन में था कि अचानक एक उपाय सूझा  “अच्छा चालान ही भरना ज़रूरी है या ऑनलाइन पेमेंट भी कर सकते है ? ” पूछने पर अन्नू ने थोड़ा अनमने होकर कहा “ऑनलाइन भी फ़ीस भरी जा सकती है पर आज आखिरी तारीख है… मैं रिस्क नहीं ले सकती । मुझे तो आप बैंक ही छोड़ दो ।” राहत की साँस लेते हुए मैंने बोला “ओ मेरी आउट डेटेड बहन… आज के ज़माने में ये बाबूजी जैसे बातें मत कर । technology की सुविधा है और तू कहाँ ये बैंक जाकर चालान भरने के पीछे पड़ी है । टेंशन न ले । अभी तो मैं आँफिस के लिए लेट हो रहा हूँ लेकिन आँफिस पहुँचकर पक्का तेरा काम कर दूँगा । अरे पाँच मिनट का ही काम है ….. बस तू  डिटेल्स मेसेज कर देना ।”

अन्नू को भरोसा दिला मैंने स्कूटर स्टार्ट कर फुल एक्सलेटर घुमा दिया । जैसी कि उम्मीद थी, लोग ऑफिस में मेरे पहुँचने का इन्तेज़ार करते हुए मिले । आज ऑफिस में  National Technology Day का कार्यक्रम था । उसकी व्यवस्था से लेकर संचालन की सारी ज़िम्मेदारी मुझे सौंपी गई थी । इस कार्यक्रम का सफल आयोजन न सिर्फ मेरे लिए बल्कि मेरे कंपनी के लिए भी बहुत अहम था… आखिर प्रदेश के मंत्री जी जो आ रहे थे । तैयारियों का जायजा लेते-लेते दो कब बज गए पता ही नहीं चला ।  स्टेज, स्पीच, मंत्री जी और उनके काफिले की विशेष आवभगत …. सभी तरफ़ से आश्वस्त हो जाने के बाद मैं कुर्सी पर निढाल सा बैठ गया । फिर याद आया… ज़रा मंत्री जी के काफिले की भी खबर ले लूँ । जैसे ही फोन निकाला तो देखा अन्नू के चार मैसेज और तीन मिस्ड कॉल थे । पहले मैसेज में फ़ीस भरने की डिटेल्स और बाकी तीनों मैसेज में एक ही बात “भईया प्लीज़ फ़ीस जमा करना भूलना नहीं ” । आयोजन की वयस्तता में तो मैं वाकई अन्नू की फीस का काम भूल ही गया था । कार्यक्रम भी शुरू होने को है और मोबाइल में भी सिगनल कुछ सही काम नहीं कर रहा है । समय के इस छोटे से अंतराल में मन ने मानो फिर मुझे समझाने की कोशिश की “सिर्फ पांच मिनट का ही तो काम है न… बस एक बार यहाँ सबकुछ ठीक से हो जाए फिर आराम से फीस भर दूँगा” अपने मन के सामने फिर नतमस्तक होकर मैंने अन्नू के काम को शाम तक के लिए टाल दिया ।

सूर्य अस्त होने की कगार पर है । पंडाल की लाइट्स की तरह मेरे चेहरे पर भी खुशी की रौशनी साफ़ झलक रही थी । तालियों की गड़गड़ाहट और मंत्री जी का निजी रूप से मुझे मुबारकबाद देना कार्यक्रम की सफलता को स्वयं बयान कर रहा था । घंटो में होने वाले काम को मिनटों में करने वाली मेरी ऐप्प को “बेस्ट इन्नोवेशन ऑफ द इयर” का मेडल भी मिल गया था । इतनी थकान के बावजूद मैं खुद को काफी उर्जावान महसूस कर रहा था । ऐसा लग रहा था जैसे सिकंदर की तरह मैंने भी किसी संसार पर विजय प्राप्त कर ली हो । दोस्तों से मुबारकबाद बटोरने के बाद उत्साह से भरपूर घर पहुँचते ही मैंने माँ और बाबूजी को पूरे दिन की बात बताई । उनके चेहरे पर गर्व और प्रशंसा की मिश्रित खुशी साफ़ दिख रही थी । लेकिन… तभी कमरे से भागती हुई आती अन्नू को देखकर मुझे याद आया … अन्नू की फीस… oh god, सफलता के जश्न में मुझे फीस भरना तो याद ही नहीं रहा । भागती हुई नज़रें घड़ी पर टिकी । अभी 9 ही बजे थे । अन्नू कुछ बोल पाती उस से पहले मैं ही बोल पड़ा “सॉरी बहन, पूरे दिन इतना व्यस्त था कि टाइम ही नही मिला लेकिन तू टेंशन न ले । बहुत भूख लगी है तो बस खाना खाते ही तेरा काम करता हूँ” । पैर पटकते खिसयाती सी अन्नू अपने कमरे में चली गई । डायनिंग टेबल के पीछे खड़े बाबूजी उसे देख मुस्कुरा रहे थे ।

खाना खाने के बाद मैंने घर का कंप्यूटर स्टार्ट कर फीस भरने का काम शुरू किया । कुछ ही देर में सारी डिटेल्स भर कर पेमेंट के लिए क्लिक कर दिया । सामने कंप्यूटर की स्क्रीन ओ. टी. पी. के लिए मेरी ओर देख रही थी । “ओ. टी. पी. …. अरे मेरा मोबाइल…” अपनी जेब टटोलते हुए इधर उधर नज़रें दौड़ाई । फिर कुछ सोचते हुए मैंने चीखते हुए अन्नू को आवाज़ दी “ अरे अन्नू …. जल्दी से मेरा आफिस बैग ला दे । मोबाइल में ओ. टी. पी. देखना है फीस भरने के लिए” । आनन फानन में अन्नू और मैंने पूरा बैग छान मारा लेकिन मोबाइल का कहीं अता-पता नहीं था । तभी अचानक मुझे याद आया “अरे हाँ … बैटरी खत्म होने की कगार पर थी तो ऑफिस की डेस्क पर ही चार्जिंग पर लगा छोड़ आया । “अब क्या करें… ओ. टी. पी. के बगैर तो पेमेंट हो नहीं सकता और बाबूजी ने भी अपने बैंक खाते पर इन्टरनेट बैंकिंग ली नहीं है । मोबाइल के बिना तो अब नंबर भी याद नहीं रहते और न कहीं मैंने अलग से नंबर लिखे हुए वरना दोस्तों को ही कॉल कर पेमेंट करवा देता” । घोर असमंजस से निकलने के लिए अभी मैं दिमाग चला ही रहा था कि अन्नू ने रोना शुरू कर दिया “मेरा एक साल बर्बाद हो जाएगा… मुझे आपकी सुननी ही नहीं चाहिए थी” । मुश्किल की घड़ी में खुद को मैं असहाय सा महसूस कर रहा था । उड़े बाल और पसीने से तरबतर जब मुझे कुछ और नहीं सूझा तो मैंने बिना समय गवाएं चाभी ली और स्कूटर को आँफिस की तरफ़ दौड़ा दिया ।

सिगनल पर रेड लाइट और ट्रैफ़िक मेरे दिल की धडकनों को और तेज किए जा रहे थे । ऐसा लग रहा था जैसे घड़ी की सुई मुझसे दौड़ लगा आगे निकले जा रही थी । आँफिस पहुँचते-पहुँचते 11:45 हो गए । भागते हुए मैं अपनी डेस्क पर पंहुचा और बिजली की गति से कंप्यूटर ऑन कर दिया । लेकिन मुश्किलें शायद अभी बाकी थीं । “Nooooo….” डेस्क पर एक मुक्का मार मैं गुस्से से चीख पड़ा “इस विन्डोज़ को भी अभी अपडेट होना था” । मन कर रहा था कि इस अपडेट को खींच कर जल्दी से 100% कर दूँ । 1-1 सेकंड अब मेरे लिए पहाड़ जैसा प्रतीत हो रहा था । जब तक कंप्यूटर खुलता मैंने मोबाइल को चार्जिंग से निकाला । बाबूजी का एक मैसेज और 5 मिस्ड कॉल आये हुए थे लेकिन घड़ी की सुई अब 11 बजकर 57 मिनट पर आ चुकी थी । मैसेज को अनदेखा कर मैंने सारी डिटेल्स भर कर भुगतान की प्रक्रिया दोबारा से दोहराई और मोबाइल पर आये हुए नए ओ. टी. पी. को पेमेंट पेज पर डाल कर “Pay” बटन पर क्लिक कर दिया । पेमेंट कंफर्म होने से पहले वाला वो गोल-गोल चक्कर मानो मेरे धैर्य की परीक्षा ले रहा था । मेरे दिल की धड़कने दिमाग में हथोड़े जैसे बज रही थी । पेमेंट के Decline होने के डर ने हाथ पाँव सुन्न कर दिए थे । थोड़ी देर में गोल चक्कर रुकने के बाद स्क्रीन पर मैसेज आया “Transaction rejected. Payment for this enrollment number has already been received.” मैसेज को दो-तीन बार पढ़ा लेकिन कुछ समझ नहीं आ रहा था । दिलो-दिमाग चकरा गया “फीस पहले से ही भर दी…लेकिन किसने?…और अगर फीस भर ही गई थी तो अन्नू घर पर रो क्यूँ रही थी?…या फिर कहीं ये मैसेज ही गलत हो ।” बहुत सारे सवाल दिमाग में घूम रहे थे लेकिन जवाब एक का भी नहीं था ।  

12 बजकर 1 मिनट हो चुके थे और फीस जमा करने कि तारीख गुज़र चुकी थी । निराशा और असमंजस से भरे मन के साथ कंप्यूटर का पॉवर बटन दबा मैंने मोबाइल उठाया और पार्किंग की तरफ चल दिया । समझ नहीं आ रहा था कि घर पर क्या बोलूं? इसी उधेड़बुन में अचानक याद आया “बाबूजी का मैसेज” । फोन खोल कर देखा “बेटा अन्नू की फ़ीस मैंने बैकं में जमा कर दी है । सोचा की तुम शायद व्यस्त रहोगे तो भूल न जाओ इसलिए ।” उस मैसेज ने मेरी दिन भर की थकान और परेशानियों को पलक झपकते ही खत्म कर दिया । सालों बाद मैंने ऐसी सकून की साँस ली होगी । मतलब डायनिंग टेबल के पास खड़े बाबूजी केवल अन्नू पर नहीं बल्कि हम दोनों पर मुस्कुरा रहे थे । मेरे आउट डेटेड बाबूजी उस कछुए की तरह निकले जिसने काम कल पर टालने वाली आज की पीढ़ी रूपी खरगोश को हरा दिया । मेरे जीवन के इस  नाटकीय technology day का अंत भले ही हमारी हिंदी फिल्मों की तरह सुखद था लेकिन वो जाते-जाते मुझे एक पाठ जरूर पढ़ा गया “technology राह को आसान तो बना सकती है लेकिन मंजिल पर पहुँचने के लिए निश्चय और समय रहते पहला कदम तो हमें ही उठाना होगा ” ।

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