धीरे धीरे परत दर परत मेरा विकास हो रहा था । एक अजन्मे शिशु की तरह अपने पौध को धकेलते हुए मैं अपने आने की व्याकुलता गाहे-बगाहे जाहिर करती रहती थी । परन्तु मेरी इस अबोध इच्छा के बावजूद मेरा जन्मदाता, किसान, आंधी और कीट से बचाते हुए उचित समय की प्रतीक्षा करता रहा । जिस तरह माँ के गर्भ में एक बच्चा बाहर निकलने के लिए बैचेन रहता है उसी तरह मैं भी मिट्टी के अंदर से निकलने के लिए आतुर थी । आखिरकार वह शुभ दिन आ ही गया जब मैं जन्मभूमि के साथ अपने सम्बन्ध को समाप्त करते हुए बाहरी दुनिया में आ गई ।
मिट्टी से लथपथ मेरे शरीर को जब किसान ने साफ़ किया, तब धीरे-धीरे अपनी आँखें खोल मैंने प्रकाशवान और सुन्दर सी दुनिया को पहली बार देखा । उस समय ऐसा लगा कि जन्म लेने से पूर्व की गई मेरी तपस्या सफल हो गई । खेत से किसान के घर तक का सफर मेरे लिए नवीनता और ऊर्जा से भरा हुआ था । किसान के घर में मेरा स्वागत कुछ ऐसे हुआ जैसे घर आये किसी अतिथि का । किसान के घर तक सिमटी मेरी दुनिया मुझे अत्यंत प्रिय लग रही थी । चिलचिलाती धूप में पसीने से लथपथ भूखे किसान ने जब अपने हाथ से मुझे तोड़कर अपनी सूखी रोटियों से खाया तो मुझे अपने जीवन की पूर्णता और सफलता पर गर्व महसूस हुआ लेकिन दुनिया के असली सत्य अभी मेरे सामने आने बाकी थे ।
स्वभाव से मिलनसार होने के कारण विभिन्न सब्जियों के साथ मिलजुल कर स्वाद और स्वास्थय वर्धन करना ही मेरा हमेशा प्रयास रहा किन्तु… कहते हैं न कि “सर्वगुण संपन्न कोई नहीं होता” । मैं मानती हूँ कि मेरी गंध कई लोगों को पसंद नहीं आती लेकिन मेरे इस अवगुण को धर्म विशेष से जोड़ कर इसे जब भगवान का अभिशाप करार दिया गया तो मुझे काफी दुःख पहुँचा ।

अपने जीवनकाल में विभिन्न लोगों से मिलकर मुझे पता चला कि इंसान भी मेरी ही तरह कई परतों को समेटा हुआ है । समय आने पर उसकी चालाकी और कुटिलता की परतें स्वतः ही उजागर हो जाती हैं । अपने फायदे के लिए उसने मुझे मंडी से सीधे गोदामों में बंद कर दिया । जहाँ अँधेरे में डरी-सहमी मैं बाहर निकलने के लिए तडपती रही तो वहीँ मेरी झूठी कमी बताकर मेरे नाम पर व्यापारियों ने तगड़ा मुनाफा वसूला । बेचारा किसान, जिसने मुझे जन्म दिया, प्यार दिया, उसके काम न आ कर मैं कुछ मक्कार लोगों के हाथ की कठपुतली बन कर रह गई । गरीबों की प्लेट से दूर कर कुछ ने मेरे नाम पर राजनीतिक रोटियां सेंक ली तो कुछ ने अपनी तिजोरियां भर लीं । मैं मूक खड़ी इस दुनिया की भ्रमित करने वाली सुंदरता के अंदर छिपे धोखे और कुटिलता को देख रो पड़ी । दुनिया के ऐसे रंग देख दूसरों को रुलाने वाली प्याज की आँखों में भी आज आंसूं थे ।
Truth of our life, You explain it very beautifully. Better we all should accept our real predestination , life will become very ease for all.
Hmm..bitter truth
kya bat
Well said, perfectly true
प्याज की आत्म कथा को बहुत सुंदर तरीके से दर्शाया है।शाबाश
Very nicely written. Good one.