बदले का धुआँ
मेरे बदले की बुझती हुयी आग होठों और नाक से धुंआ बन निकल रही थी । घड़ी की बढती हुयी सुइयों के साथ मुझे अपनी जीत नज़र आ रही थी । मेरे फेंफड़ों और साँसों में बस चुके इस प्यार को छोड़ आज उन पुरानी यादों से मैं हमेशा के लिए आजाद हो जाऊंगा ।
मेरे बदले की बुझती हुयी आग होठों और नाक से धुंआ बन निकल रही थी । घड़ी की बढती हुयी सुइयों के साथ मुझे अपनी जीत नज़र आ रही थी । मेरे फेंफड़ों और साँसों में बस चुके इस प्यार को छोड़ आज उन पुरानी यादों से मैं हमेशा के लिए आजाद हो जाऊंगा ।
“नमित मुझ से बर्दाश्त नहीं हो रहा है । एक औरत होने का सबसे बड़ा सुख भगवान ने मुझ से क्यूँ छीन लिया । मुझे माँ बनना है नमित । मुझे माँ बनना है ।” कहते हुए लतिका फूट फूट कर रो पड़ी । आज पहली बार लतिका ने अपने दिल का दर्द मेरे साथ साझा किया था । लेकिन उस दर्द की उस समय मेरे पास कोई दवा न थी ।
हम मैं से अधिकाँश के लिए सामान्य सी दिखने वाली उन चीजों को खोने का मलाल काउंटर से अपने कदम पीछे खीचती हुयी उस बच्ची के चेहरे और आँखों में रुके आंसुओं में दिखाई दे रहा था । परन्तु इस पूरे घटनाक्रम के बावजूद उसकी माँ के चेहरे पर अफ़सोस की जगह संतुष्टि थी ।
बचपन जिंदगी के सफर का सबसे खूबसूरत पड़ाव होता है । इस दौरान हम अक्सर ढेरों छोटी बड़ी बातें संजोते हैं । वे बातें जिन्हें सोचकर अपनी नासमझी और मासूमियत पर गुस्सा नहीं बल्कि हँसी आ जाती है । एक ऐसा ही किस्सा है ये कहानी ।