किचिन सेंटर

आज मुझे अपने आस-पास ऐसे कितने ही संसाधन दिख रहे थे जिन्हें मैंने इकठ्ठा तो कर लिया पर अब ठीक से उपयोग भी नहीं करता । उल्टा नयी-नयी चीजें जोड़ने की चिंता में फंसा हुआ हूँ । ऐसे कितने ही अधूरे काम जिन्हें कोशिश करे बिना ही मान लिया कि नहीं कर पाउँगा ।

दान

पहले मुझे भ्रम था कि रूपए पैसों से खरीदी उन चीजों को मैं वृद्धाश्रम में दान कर रहा हूँ । यानी मैं कुछ दे रहा हूँ । लेकिन मेरा ये ‘मैं’ तो कतई खोखला था । वास्तविकता में उनके निश्छल प्रेम और ढेर सारी दुआओं ने मेरी बेटी को ही मालामाल कर दिया था ।

फेसबुक बना हथियार

उसने बिल्डर द्वारा उस पर की जा रही ज्यादतियों को फेसबुक पर शेयर करना और मदद की अपील करना शुरु कर दिया । लेकिन सब फिल्मी कहानियों में जितना आसान लगता है उतना था नहीं । शुरू में कोई ख़ास सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं आई । उल्टे कुछ लोगों ने उसकी बात का मजाक बनाया । गंदे-गंदे कमेंट लिखे ।

निवेश

“दादा…थोड़ा अपने और परिवार के बारे में भी सोचो । यूँ इधर-उधर आप इन लोगों पर पैसे लुटा रहे हो, आपको क्या लगता है कि वे आपके पैसे वापस कर पायेंगे? अपने भविष्य के लिए पैसों को सही जगह निवेश करो दादा ।” मेरी बात पर दादा हँस दिए थे “ऊपर वाले की दया से परिवार में किसी चीज की कोई कमी नहीं महेश । जहां तक रही भविष्य की बात तो उसे किसने देखा है? हाँ लेकिन ये जरूर है कि इन पैसों की मेरे भविष्य से ज्यादा जरूरत आज इन लोगों के वर्तमान को है ।