मिठास

“न…आपकी ये झूठी बातें मुझे नहीं सुननी । और अगर सच ही बोल रहे हो तो खाओ मेरी कसम ।” आटा मलती हुई कविता किचिन के अंदर से ही बोली

“कसम…शादी के 42 साल बाद भी ।  मेरी बात का विश्वास नहीं तुम्हें” किचिन के गेट पर खड़े शेखर ने कहा तो कविता तमतमा उठी

“नहीं है…मुझे अब आपकी किसी भी बात का विश्वास नहीं । इतने सालों से मैं आपकी बातों पर विश्वास करती आ रही हूँ लेकिन लगता है आपने न जाने कितनी बार मुझसे झूठ बोला होगा । अब जब तक आप कसम नहीं खाओगे तब तक मैं यकीन नहीं करूँगी”

“क्या बच्चों जैसी बात कर रही हो । मैंने तुम से क्या झूठ बोला ? बस मन में वहम पाला हुआ है । अब तुम्हें भरोसा ही नहीं तो फिर मेरे कुछ भी कहने का कोई फायदा नहीं है । छोडो मुझे भी फिर कुछ नहीं कहना । ” कहते हुए शेखर ड्राइंग रूम में जा कर टी. वी. पर न्यूज़ देखने लग गया ।

शेखर को यूँ बैठा देख गुस्से में बड़बड़ाती कविता ने गुंथे हुए आटे को प्लेट से ढका और सिंक पर हाथ धोने लगी “छोड़ो…अरे कैसे छोड़ दूँ ? भुगतना तो मुझे ही पड़ेगा । आप तो बीमार हो कर बिस्तर पकड़ लोगे । तीमारदारी के लिए बीवी तो है ही । 66 के हो कर बचपना आप कर रहे हो और बोलते हो मैं बच्चों जैसी बातें कर रही हूँ । ”

कविता की इस बड़-बड़ के कारण शेखर न्यूज़ भी ढंग से नहीं सुन पा रहा था ।  आखिरकार उठ कर वो फिर किचिन में पहुँच गया “तुम चाहती क्या हो? मेरी बात सुनने को तो तुम तैयार नहीं हो । ”

“मुझे आपकी कहानियाँ नहीं सुननी… मेरी कसम खा कर कहो…आप अभी भी छुप-छुप कर मीठा खा रहे हो न” कविता ने शेखर के कांपते हुए हाथ को अपने सिर पर रख दिया ।

थोड़ी देर असमंजस में रहने के बाद आखिर शेखर ने बोल ही दिया “ठीक है… तुम्हारी कसम मैं मीठा नहीं खा रहा ।  खुश… अब मैं शान्ति से समाचार सुन सकता हूँ?”

शेखर वापस ड्राइंग रूम में चला तो गया पर कविता को अब भी उसकी बात पर विश्वास नहीं था ।

कविता की लाख कोशिशों और देखभाल के बावजूद ढलती उम्र की परेशानियों और शरीर की थकान ने शेखर को घेरना शुरू कर दिया था । एक तो आलस और उसके ऊपर शेखर का थोड़ा जिद्दी स्वभाव… योग करना नहीं और दवाइयों के मामले में भी खुद की डाक्टरी चलाना । न हाथ कँपकँपाने की दवाई सही से लेते और न ही शुगर की दवाई । उनकी जगह बीच-बीच में अपना कुछ देसी इलाज़ निकाल लाते। ज्यादा कुछ बोल दो तो बस झोला उठा वॉक करने निकल लेते थे । इसके ऊपर पिछले साल भर में उसका शुगर लेवल काफी ज्यादा हो गया था । इंसुलिन तक की नौबत आ गई लेकिन फिर भी पूरी तरह कंट्रोल नहीं था । डा. ने शेखर की उम्र और स्थिति को देखते हुए दवाइयों के साथ-साथ मीठे और खानपान में परहेज़ की सख्त हिदायत दी थी ।  

“दवाइयाँ तो ठीक लेकिन मीठे से दूरी…” कविता को डर था । क्यूंकि मीठा तो शेखर का पहला प्यार और सबसे बड़ी कमजोरी थी । सालों पहले शुगर की शिकायत शुरू होने के बावजूद भी शेखर ने मिठाई पर कभी नियंत्रण नहीं किया ।  अगर सामने खाने से मना करो तो चोरी छुपे खाना । और फिर अब तो स्थिति ज्यादा गंभीर थी ।

घर में मिठाई, चीनी और आलू पर लगे प्रतिबंध के दवाब में शेखर को घुटन महसूस होने लगी थी । उसके ऊपर डा. का बताया सख्त डाईट प्लान । 6-7 महीने तक तो शेखर ने बहुत चिड़- चिड़ की ।  आये दिन की लड़ाई होने लगी । मीठे की तलब में कई बार गुस्से में खाना भी फेंक दिया । इन सबके बावजूद कविता ने शिकंजा ढीला नहीं करा । लेकिन कहीं न कहीं शेखर की जिद के कारण उसकी सहनशीलता भी अंदर से थकान मान रही थी । फिर आश्चर्यजनक रूप से धीरे-धीरे शेखर नॉर्मल होने लगा । डाईट वाला खाना बिना मुँह बनाये खा लेना, दवाइयाँ और जूस खुद याद दिलाकर माँगना, सुबह शाम की नियमित वॉक वो भी बिना कुछ मीठे की माँग किये । उसके ऊपर शेखर के चेहरे की खुशमिजाजी ।  इन सब ने कविता के मन में खुशी की जगह शक पैदा कर दिया था ।

“बिना मीठा खाए कैसे…हो न हो ये बाहर जा कर चुपचाप मीठा खा कर आते हैं । ”

चिंता में घुल रही कविता की आज इसी बात को लेकर शेखर से तनातनी हो गई । उसे पता था कि सीधे- सीधे तो वो नहीं बताएँगे लेकिन उसकी झूठी कसम भी नहीं खायेंगे । लेकिन थोड़ी देर की ना नुकुर के बाद वो तो अविचल भाव से कसम खा कर निकल लिए ।  इससे कविता के विश्वास को बहुत ज्यादा ठेस लगी । फिर भी वो गुस्से को पी कर किचिन के काम में लग गई क्यूंकि आज उसके पास अपनी सोच को साबित करने का कोई प्रमाण नहीं था ।

इस बात के कुछ दिनों बाद सत्संग से लौटते समय कविता ने शेखर को मिठाई की दुकान से बाहर निकलते हुए देखा । हाथ में बड़ा सा पैकेट और चेहरे पर उत्साही खुशी ।  ये देख कविता का गुस्सा सातवें आसमान पर था ।  

“तो ये सब हो रहा है । इसीलिए वॉक के नाम पर इनकी बूढ़ी हड्डियों में भी जान आ जाती है । ” मन ही मन बोलती कविता ने पहले सोचा कि अभी जाकर पकड़ लेती हूं ।  लेकिन फिर ख्याल आया कि रंगे हाथ ही पकडूंगी । वरना फिर कोई बहाना बनाकर झूठी कसम खा लेंगे । चोरी छुपे कविता शेखर का पीछा करती गई ।  जैसा कि उसे अंदेशा था, शेखर घर की तरफ ना मुड़ कर  सीधे आगे चल दिए ।  

“अकेले नहीं होंगे ये…पाप में भागीदारी के लिए मित्र मंडली होगी । उनके साथ ही मिठाई की दावत होती होगी । ” सोचते हुए कविता ने शेखर का पीछा करना जारी रखा ।  एक अंडर कंस्ट्रक्शन बिल्डिंग के पास जाकर शेखर रुक गया ।  बालू के ढेर और रास्ते पर पड़ी लोहे की सरिया के बीच सावधानी से पैर रखते हुए वो वहाँ बनी झुग्गी झोपड़ियों के पास पहुँच गया ।  नीचे पड़े लकड़ी के टुकड़े से उसने टीन की एक चादर को बजाना शुरू कर दिया ।  कविता को समझ नहीं आ रहा था कि आखिर चल क्या रहा है? देखते ही देखते 8-10 बच्चों की भीड़ इकट्ठी हो गई ।  अलग-अलग उम्र के बच्चे ।  नंगे पाँव, मैले कुचैले कपड़े, मिट्टी में उलझे हुए बाल लेकिन चेहरों पर खुशी ।  शोर मचाते हुए उन बच्चों ने शेखर को घेर लिया ।  शेखर ने हाथ में लगा मिठाई का पैकेट खोल वहीँ पड़ी कुर्सी पर रख दिया ।  मिठाई देख बच्चों की आंखों में जैसे चमक आ गई हो ।  बच्चों ने एक-एक मिठाई उठाई और नाचते हुए खाने लगे । इन सब के बीच कविता की नजरें अब भी शेखर पर थी । उसे शेखर को रंगे हाथ जो पकड़ना था । और उम्मीद के मुताबिक़ डिब्बे का आखिरी मिठाई का पीस शेखर ने उठाया जरूर लेकिन फिर उसने वह पीस खुद ना खाकर पास खड़े छोटे से बच्चे को दे दिया ।  खाली मिठाई के डब्बे को कूड़ेदान में फेंक शेखर भी उन बच्चों के साथ मगन हो गया । कोई बच्चा उन्हें ड्राइंग दिखा रहा था तो कोई कमर मटका-मटका कर डांस ।   यानी शेखर ने झूठी कसम नहीं खाई थी ।  

कविता को अब शेखर पर शक करने का बहुत अफसोस हो रहा था ।  उन चहचहाते और खिलखिलाते बच्चों की खुशियों को साझा करते हुए शेखर को पता ही नहीं चला कि कब कविता उसके पीछे आकर खड़ी हो गई ।  कंधे पर कविता के हाथ का स्पर्श पा शेखर ने पीछे मुड़कर देखा तो हक्का-बक्का रह गया ।  इससे पहले वो कुछ बोल पाता, कविता ने उसके कंपकंपाते हुए हाथों को पकड़ लिया ।  कविता की आंखों में माफी के आँसू और चेहरे पर गर्व की मुस्कान थी ।  शेखर समझ गया था कि कुछ कहने या समझाने की जरूरत नहीं है ।  दोनों एक दूसरे की तरफ देखे जा रहे थे ।  इसी बीच एक बच्चा शेखर का हाथ पकड़ नाचने लगा ।  कविता की ओर प्यार भरी निगाहों से देख शेखर भी नाचने लगा ।  उन बच्चों के बीच शेखर को जीवन की असली मिठास मिल गई थी ।  वहीं इस वाक्ये ने कविता के दिल में घुली कड़वाहट को खत्म कर उनके रिश्ते में भी एक नई मिठास घोल दी थी ।

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