पिछले 2-3 महीने से ऑफिस और घर के बीच का संतुलन गडबडाया हुआ सा था । जहां पलड़ा ऑफिस के काम की तरफ झुका हुआ था वहीँ घर में दीपावली के पचास काम मुँह फाड़े खड़े थे । भरसक कोशिश के बाद भी मैं इन सब की ओर ध्यान ही नहीं दे पा रहा था । इसी कारण सामान्यतः शांत रहने वाले दीपिका के चेहरे पर शिकायतों और क्रोध के भाव गहराने लगे थे । घर की इस विस्फोटक होती स्थिति पर तत्काल ध्यान देना जरूरी था क्यूंकि धर्मपत्नी के क्रोध के आगे जब देवता भी न टिक पाए फिर मेरी क्या औकात ।डेस्क पर लटका calendar परसों दीपावली की छुट्टी दिखा रहा था ।“कल की छुट्टी लगा देता हूँ ।2 दिनों में घर के काम भी हो जायेंगे ओर अपने लिएभी कुछ समय मिलजाएगा ।” इसी सोच विचार मेंमैनेजर को छुट्टी का e-mail डाल दिया ।
अगले दिन की छुट्टी के एवज में काम निपटाकर घर पहुँचते-2 कुछ ज्यादा ही देर हो गयी । डिनर टाइम निकल चुका था । मेरे इंतजार में ठंडी हो चुकी रोटियों को दीपिका ने तवे पर गर्म कर डाइनिंग टेबल पर रख दिया । या यूँ कहूँ पटक दिया ।casrol की ‘ठक’ से रखने की आवाज़ से मेरा ध्यान मोबाइल फोन से निकल कर श्रीमती जी की तरफ गया ।उसके चेहरे की थकान से स्थिति की गंभीरता समझ आ रही थी । पिछले 2 दिनों से श्रीमतीजी अपने ऑफिस से जल्दी निकल दीपावली की साफ़ सफाई और बाकी तैयारियों में लगी पड़ी थी । मुझ से भी यही अपेक्षित था लेकिन मेरा हाल तो आपको बता ही चुका हूँ । “ क्या हुआ ? तबियत तो ठीक है न?” अपने मोबाईल फोन को थोड़ा दूर रखते हुए मैंने पूछा । “ कुछ नहीं… आप अपने ऑफिस की ही टेंशन लो । वैसे भी घर की आपको कुछ पड़ी ही कहाँ है । ऑफिस, घर और त्यौहार की तैयारियों के बीच पिछले 2 दिनों से लगातार घड़ी की सुई की तरह तो मुझे घूमनापड़ रहा है ।‘फुर्सत के दो पल’ भी नसीब नहीं… लेकिन आपको क्या ?” गुस्से से भरी पड़ीदीपिका का एक सांस में बोला गया ये जवाब तीर की तरह दिल को चीरता हुआ निकल गया ।
वैसे बात काफी हद तक सही थी । बचपन में सब के साथ मिलजुल कर त्यौहार के काम करने का अलग ही उत्साह रहता था । तब काम भी खेल सरीखे लगते थे । लेकिन अब, घर से दूर, ऑफिस की भागमभाग के बीच, दो लोगों के परिवार में त्यौहार के काम किसी जंग सरीखे लगने लगे हैं ।और अब तक तो दीपिका इस जंग को अकेले ही लड़ रही थी । उस समय गुस्से में तमतमाती हुयी दीपिका को कल की छुट्टी के बारे में बताने कि हिम्मतनहीं हुयी । मुझे नहीं पता था कि क्या काम करने अभी बाकी हैं लेकिन जरूरत थी अगले 2 दिन में मिल जुल कर सारे काम खत्म करने की ताकि हम दोनों को ‘फुर्सत के दो पल’ मिल सकें ।
सुबह मेरे उठने से पहले ही वो कामकाज में लग चुकी थी । “ लंच लेकर जाओगे या ऑफिस में ही कर लोगे? उसी हिसाब से मैं अपने बाकी काम देखूं । “ मेरे छुट्टी के प्लान से अनभिज्ञ दीपिका ने सोफे के कवर बदलते हुए पुछा ।“ आज और कल No office and No work of office…All time ।s for us “मेरा फिल्मी अंदाज़ में बोला गया जवाब सुन थोड़ी देर के लिए वोअपना काम छोड़ मेरी तरफ देखती रही । उसकी अचरज से भरी आँखें और माथे के बल बता रहे थे कि उसे मेरी बात पर विश्वास ही नहीं हुआ । उसे मेरे ऑफिस में काम केpressure और criticalityके बारे में पता था । लेकिन मेरे बार बार यकीन दिलाने से उसके चेहरे पर चिंता के भाव कुछ सिमटने लगे । कहते हैं न कि सफर में कोई साझीदार मिल जाए तो राह की मुश्किलें भी बौनी लगने लगती हैं । दीपिका को भी त्यौहार के काम में एक साझीदार मिल गया था ।

साथ में चाय पीते हुए जब हमने बचे हुए काम की लिस्ट बनायी तो मुझे एक झटका सा लगा । “बाप रे !!! इतना सारा काम ” लिस्ट पर दुबारा नजर घुमाते हए मेरे मुंह से स्वतः ही निकल पड़ा । खैर तैयार हो हमने सोचा पहले बाजार का काम निपटा लिया जाये ।भीड़ से सराबोर बाजार में पार्किंग की तलाश से शुरू हुयी मेरी जद्दोजेहद सामान छांटने, bags उठाने और दीपिका की bargaining प्रतिभा को संयमित हो देखने तक चलती रही । शाम को घर पहुँचते-2 हालत पस्त थी लेकिन अभी आराम करने का समय नहीं था । लाये हुए सामान को जगह पर रख पहले पंखों की सफाई करी और फिर झालर लगाने की मशक्कत शुरू हो गयी । लिस्ट का 80-85 % काम करने में ही रात के पौने दस बज चुके थे । अब न तो दीपिका में खाना बनाने की हिम्मत थी और न ही भूख से बेहाल मुझ में इन्तेज़ार करनेकी । घर के पास वाले restaurant से मंगवाया खाना खाकर हम दोनों बेड पर निढाल हो पड़ गए । वाकई पूरे दिन से‘फुर्सत के दो पल’ नदारद थे ।
दीपावली की सुबह तक लिस्ट और लंबी हो चुकी थी । कल के बचे हुए काम के साथ-साथ फूल माला, रंगोली, पूजा की तैयारी, final साफ़ सफाई और इधर-उधर के छोटे-मोटे काम लिस्ट में जुड़ते जा रहे थे । युद्धस्तर पर काम करने के बावजूद भी काम निपटाते-2 शाम के 6.30 हो गए ।मन कर रहा था कि एक झपकी ले ली जाए लेकिन पूजा का मुहूर्त 7.23 तक ही था । जल्दी से तैयार हो हमने अपनी समझ के अनुसार दीपावली का पूजन किया । अभी फोन पर बड़े लोगों से आशीर्वाद लेने का सिलसिला चल ही रह था कि पड़ोसियों की टोली ने घर पर धावा बोल दिया ।दीपावली की शुभकामनाओं और मिठाई के आदान प्रदान के बाद सब लोग नीचे पटाखे चलाने के लिए इकठ्ठा हो गए ।

कमरतोड़ मेहनत करते-करते 2 दिन कहाँ निकल गए पता ही नहीं चला । लगा था थोड़ा वक्त निकलजाए तो अपना अधूरा पढ़ा वो novel पूरा कर लूँगा ।लेकिन अलमारी के कोने में रखे novel को इस बार भी निराशा हाथ लगी । फिर भी इस बात का मुझे कुछ मलाल नहीं है । सही कहूँ तो त्यौहार की तैयारियों के बहाने दीपिका के साथ बिताया समय कुछ खास रहा । ये दो दिन हमारे रिश्ते को एक नयी ऊर्जा दे गए ।दोस्तों-रिश्तेदारों के बीच दीपावली की खुशियाँ साझा करती दीपिका के चेहरे पर थकान अब गायब सी होने लगी थी । उसकी तरफ एक फुलझड़ी बढाकर जब मैंने Happy Deepawali बोला तो उसकेचेहरे की मुस्कान भी फुलझड़ी जैसी जगमगा उठी ।फुलझड़ी को गोल-2 घुमाती दीपिका के‘फुर्सत के दो पल’ शायद यही थे ।
Nice story.. deepawali se pahle ki taiyari ka saziv varnan…