कुटुम्ब

इंतज़ार की एक-एक घड़ी भारी जान पड़ रही थी । मैं लतिका की हथेली को अपनी दोनों हथेलियों के बीच रख उसे हिम्मत देने की कोशिश जरूर कर रहा था लेकिन सच तो यह था कि मेरे अन्दर का डर भी प्रतिपल गहराता जा रहा था । क्लीनिक की दीवारों पर हँसते मुस्कुराते बच्चों की ये तस्वीरें । साल भर से ऊपर हो गया हमें इस क्लीनिक में आते-आते । उस समय इन तस्वीरों की ये मोहक मुस्कुराहटें हम दोनों के चेहरे पर भी ख़ुशी बिखेरती थीं । एक-एक सपना पिरोकर हम भी आने वाले जीवन का सुखद ताना बाना बुना करते थे । लेकिन धीरे-धीरे उम्मीद की किरण कमजोर पड़ रही थी । तमाम मेडिकल टेस्ट और दवाइयों के बाद डाक्टर के पास विकल्प ख़त्म होते जा रहे थे । ऊपरवाले की चौखट पर माथा रगड़ कर की गयी वो फरियादें भी अनसुनी जान पड़ रही थी । प्राकृतिक रूप से pregnancy  की सभी कोशिशें ख़त्म होती देख I.V.F. यानी कृत्रिम गर्भधारण ही हमारी आखिरी उम्मीद थी । शारीरिक और मानसिक रूप से चुनौतीपूर्ण इस प्रक्रिया के लिए लतिका ने खुद को पूरी तरह तैयार कर लिया था । बच्चे की चाह ने उसे बहुत मजबूत और जुनूनी बना दिया था । लेकिन… आज डाक्टर त्रिशला का यूँ खुद फ़ोन कर हमें मिलने के लिए बुलाना । उनकी आवाज़ की वो उदासी । I.V.F. के पहले किये गए टेस्ट वैसे भी कुछ बहुत उत्साहजनक नहीं थे । दिमाग समझ चुका था लेकिन दिल अभी भी मानने को तैयार नहीं था ।

“लतिका तुम खुद पढ़ी-लिखी और जानकार हो । इसलिए मैं ज्यादा घुमा फिरा कर नहीं बोलूंगी । You already know your problem of ovulation disorder and short life span of eggs. हमारा दवाइयों और अन्य तरीकों से इन्हें संतुलित करने का हर प्रयास विफल रहा । I.V.F. की सफलता की संभावना के बारे में भी तुम्हें पहले से ही पता था । पिछले दिनों तुम दोनों के samples को lab environment में fertilize करने की हमारी हर कोशिश नाकाम रही । I am sorry… लेकिन मुझे नहीं लगता कि आगे कोई और कोशिश करने का अब कुछ फायदा है ।” डाक्टर की कही इन सारी बातों के बीच बोला गया वो sorry दिल में आघात की तरह चुभ गया । जिस डर को हम नकारने की कोशिश कर रहे थे वो सच हो गया । डाक्टर से बात करने के लिए अब कुछ नहीं बचा था । फाइल उठा मैंने डाक्टर को thank you बोला और लतिका का हाथ पकड़ केबिन से बाहर आ गए । भावशून्य चेहरे से लतिका बच्चों के वो पोस्टर देखे जा रही थी ।

घर लौटते समय कार में हम दोनों के बीच गहरी खामोशी थी । मैं बहुत दुखी था लेकिन शायद लतिका की वेदना की कोई सीमा नहीं थी । जीवन का सबसे खूबसूरत सपना जब चकनाचूर होता है तो उसके जख्म भी बहुत गहरे होते हैं । उन जख्मों पर सांत्वना देने के लिए सारे शब्द मुझे खोखले जान पड़ रहे थे । लतिका की शांत आँखों के अन्दर आंसुओं का एक तूफ़ान था । घर पहुँच लतिका सीधे बेडरूम में चली गयी । अन्दर से आती सिसकियों की आवाज़ बता रही थी कि आंसुओं का वो सैलाब बह चला था । मैंने लतिका को रोने से नहीं रोका । लतिका के दर्द और जख्मों को मैंने समय के मरहम के सहारे छोड़ दिया था ।

अगले कुछ दिन मेरे और लतिका के बीच काम की बात छोड़ अधिकतर सन्नाटा पसरा रहा । मेडिकल टेस्ट रिपोर्टस, डाक्टर की फ़ाइल और हर वो चीज लतिका ने कूड़ेदान में डाल दी जिसने उसे उम्मीद का एक कतरा भी दिखाया था । उस दिन मैं घर का सामान ले कर घर में घुसा तो लतिका को ड्राइंगरूम की अलमारी के सामने खड़ा पाया । लतिका अलमारी के अन्दर रखा 3 फ्रेम वाला फोटो कोलाज देख रही थी । ‘HAPPY FAMILY’ लिखा वो कोलाज हमें अपने गृहप्रवेश पर मिला था । उसके दो फ्रेम में मेरी और लतिका की मुस्कुराती हुयी फोटो लगी हुयी थी । लतिका को छेड़ने के लिए मैंने तीसरे फ्रेम में ‘Coming Soon’ वाला स्टिकर चिपका दिया था । लेकिन उस समय मुझे क्या पता था कि फ्रेम का वो तीसरा फोटो विधाता ने हमारे भाग्य में लिखा ही नहीं था । आँखों से झरते आँसूं और अपलक फ्रेम को देखती लतिका को मैंने बाहों में जकड लिया । “नमित मुझ से बर्दाश्त नहीं हो रहा है । एक औरत होने का सबसे बड़ा सुख भगवान ने मुझ से क्यूँ छीन लिया । मुझे माँ बनना है नमित । मुझे माँ बनना है ।” कहते हुए लतिका फूट फूट कर रो पड़ी । आज पहली बार लतिका ने अपने दिल का दर्द मेरे साथ साझा किया था । लेकिन उस दर्द की उस समय मेरे पास कोई दवा न थी । लतिका को हौंसला देने की कोशिश करते बीच मैंने फोटो फ्रेम से ‘coming soon’ वाला स्टिकर हटा दिया ।

समय के साथ धीरे-धीरे लतिका अपने आपको बाकी कामों में व्यस्त कर सामान्य होने की कोशिश कर रही थी । काफी समय से मैं लतिका से एक बात कहना चाह रहा था । एक दिन शाम को खाने के बाद वॉक करते हुए उसका थोड़ा ठीक मूड देख कर बोल ही दिया “क्या हम किसी बच्चे को गोद लेकर उसे अपनी ज़िंदगी का हिस्सा नहीं बना सकते?” बात सुनते ही लतिका के चेहरे के भाव बदल गए । “नमित अगर संतान सुख हमारे भाग्य में होता तो मेरे साथ यह सब नहीं होता । मेरे अन्दर मातृत्व की वो जमीन जिसे मैंने अपने ख्वाबों से सींच कर हरा भरा किया था , अब रेगिस्तान हो चुकी है । उसमें अब कभी कोई पौधा नहीं खिलेगा । कभी कोई मुझे माँ नहीं कहेगा । यही मेरी और तुम्हारे जीवन की कडवी सच्चाई है ।” कहते हुए लतिका मुड़ कर घर की और चली गयी । शायद मेरी इन बातों से आज उसे बहुत तकलीफ हुयी थी । लेकिन मेरा दिल कहता है कि लतिका के दर्द का बस यही एक हल था । देर-सबेर ही सही लेकिन लतिका को यह समझना बहुत जरूरी था ।

अगले 3-4 महीने मैं लतिका को बच्चा गोद लेने के लिए मनाता रहा । धीरे-धीरे उसका हृदयपरिवर्तन हो रहा था । उसके मन का एक कोना फिर वही सपने देखना चाह रहा था लेकिन दिमाग में कई तरह के सवाल थे । “क्या हम दुसरे के बच्चे को पूरी तरह अपना पायेंगे ? वो प्यार… वो देखभाल…क्या हम उसके जीवन के साथ वो न्याय कर पायेंगे जो अपने बच्चे के साथ करते ? और क्या वो बच्चा हमें माता पिता की तरह अपना पायेगा ? ” लतिका के ऐसे कितने ही सवाल जो कहीं न कहीं मेरे मन में भी थे । उस समय उन सारे सवालों का जवाब मेरे पास नहीं था । लकिन जवाब ढूँढने के लिए जरूरी था हमारा अगला कदम जिसके लिए अब मैं और लतिका पूरी तरह तैयार थे ।

डाक्टर त्रिशला के बताये अनाथाश्रम में फ़ोन कर मैंने adoption की सारी प्रक्रिया और legal formalities का पता कर लिया था । सारे documents और reports तैयार कर हम अनाथाश्रम पहुँच गए । शहर के बीच स्थित ‘कुटुम्ब’ एक ही परिसर में वृद्धाश्रम और अनाथाश्रम चलाने का एक अनूठा प्रयास था । बगीचे के एक कोने में बच्चों को पढ़ाते वृद्धजन तो वहीं पेड़ की छाँव में एक बुजुर्ग महिला के सिर में तेल लगाते वो छोटे-छोटे हाथ । सच कहूं तो ‘कुटुम्ब’ का वो नज़ारा देख सुकून की सुखद अनुभूति हुयी । आफिस में प्रधान संचालिका मिसेज नूतन अवस्थी ने हमें आश्रम में रहने वाले बच्चों, बुजुर्गों और उनकी देखभाल से जुडी विभिन्न गतिविधियों के बारे में बताया । “लतिका जी… समाज से ठुकराए ये बच्चे इन बुजुर्गों में अपना परिवार ढूंढ लेते हैं तो वहीं बुजुर्ग भी इन बच्चों के सहारे जीने का बहाना तलाश लेते हैं ।” अवस्थी मैडम की इस बात से ‘कुटुम्ब’ नाम की सार्थकता पूरी तरह परिभाषित हो रही थी । हमारे सारे documents तसल्ली से देखने के बाद नूतन जी ने कहा “ आप लोगों का यह निर्णय उस भाग्यशाली बच्चे के लिए ईश्वर का वरदान है । I thank you from the bottom of my heart and hope you will take care of the kid as the most precious possession of your life ।” नूतन जी को आश्वासन देते हुए लतिका ने कहा “खुशियाँ तो आप हमारी झोली में डाल रही हैं । इस मायूस हो चुकी ममता को आप एक नया जीवन दे रही हैं । विश्वास रखिये इस वरदान को हम हमेशा सहेज कर रखेंगे ।” हाथ जोड़ लतिका की कही इस बात को सुन अवस्थी मैडम ने उसे गले से लगा लिया ।

मुझे और लतिका दोनों को हमेशा से एक छोटी प्यारी बच्ची की तमन्ना थी । नूतन जी ने जब हमें आश्रम के बच्चों से मिलवाया तो लाइन में पीछे की तरफ खड़ी वो सांवली सी भूरी आँखों वाली लड़की हम दोनों के दिलों में बस गयी । उसकी मुस्कान, चंचल आँखें और मासूमियत । बच्चों के जाने के बाद नूतन जी ने हमें उस बच्ची की फाइल दिखाई । 5 वर्ष पहले दुधमुंही विद्या को कुछ लोग लावारिस स्थिति में स्टेशन पर देख आश्रम पंहुचा गए थे । विद्या के बारे में बाकी जानकारी लेने के बाद हम दोनों छुप कर उसे बाहर खेलता देख रहे थे । एक बुजुर्ग महिला के साथ घूमती विद्या कभी खिखिलाती तो कभी उनका हाथ पकड़ भागने की कोशिश करती । झूले पर झूलती विद्या बार बार पीछे मुड़ कर उन महिला को देखती और जोर से चिल्लाती “अम्मू और तेज़ ” । विद्या को यूँ निहारते हुए हमें पता ही नहीं चला कि नूतन जी कब हमारे पीछे आकर खड़ी हो गयीं । “वो सुशीला जी हैं । विद्या की अम्मू । इस बच्ची में इनकी जान बसती है । सच कहूं तो विद्या को गोद लेने की आखिरी अनुमति आपको सुशीला जी से ही लेनी पड़ेगी ।” नूतन जी ने adoption की फाइल मुझे थमाते हुए कहा ।

अगला एक हफ्ता हम विद्या के साथ समय बिताने रोज़ ‘कुटुम्ब’ गए । वो बच्ची हमें अपनी सी लगने लगी थी । उसकी प्यारी सी बचकानी हरकतें तो कभी अपनी अम्मू के लिए बड़ों जैसी समझदारी । इसी दौरान सुशीला जी के साथ भी समय बिताने का मौका मिला । काफी संयत, समझदार और म्रदुभाशी महिला । अपने गुजरे हुए जीवन और दुखों के बारे में कभी बात न कर केवल दूसरों की ख़ुशी के बारे में ही सोचती थी । विद्या के साथ उनकी आत्मीयता का बंधन काफी मजबूत था । विद्या के adoption की बात सुन एकबारगी उनकी आँखें डबडबा गयी । परन्तु हमसे बात कर और अपनी सारी आशंकाओं से आश्वस्त हो जाने के बाद विद्या के उज्जवल भविष्य की सोच से उनके चेहरे पर एक शान्ति थी । विद्या को घर ले जाने से पहले उसका माथा चूम और अपने आंसुओं को आँचल में समेट सुशीला जी अन्दर चली गयीं ।

आखिरकार विद्या हमारे परिवार का हिस्सा बन ही गयी । कार की तरफ आती विद्या बार बार पीछे मुड़ अपनी अम्मू को ढूंढ रही थी लेकिन सुशीला जी अपने कमरे से बाहर नहीं निकली । फोटो कोलाज के बीच वाले फ्रेम में हमने विद्या की फोटो लगा दी थी । विद्या घर में अभी उदास और गुमसुम सी रहती थी लेकिन हम दोनों को विश्वास था कि इस घर में मिलने वाला प्यार और ममता जल्द ही इस उदासी को छूमंतर कर देगा । मैंने घर को खिलोनों से भर दिया । टॉफी…चॉकलेट…विद्या के पसंद का खाना । हर कोशिश के बावजूद खिलखिलाहट तो दूर हम उसके चेहरे पर मुस्कान भी नहीं ला पा रहे थे । “बेटा आपको क्या चाहिए?”  लतिका के बार-बार पूछने पर विद्या ने कहा “अम्मू…आंटी मुझे अम्मू के पास जाना है ।” लतिका के कई बार समझाने के बाद भी विद्या उसे आंटी और मुझे अंकल ही बुलाती थी । विद्या की ख़ुशी के लिए हम अगले दिन उसे ‘कुटुम्ब’ ले कर गए । सुशीला जी से मिल कर विद्या की वो मुस्कराहट वापस आ गयी । सुशीला जी की लाल आँखें बता रही थी कि विद्या से बिछड़ कर उनके आँसूं भी अभी तक थमे नहीं थे । पूरे दिन अम्मू के साथ खेलती हुयी विद्या ऐसी लग रही थी जैसे पानी को तड़पती मछली को नदी मिल गयी हो । लेकिन एक दिन की इस ख़ुशी के बाद जब हम घर वापस जाने लगे तो विद्या फिर उदास हो गयी ।

पूरे हफ्ते विद्या शांत रही । शोपिंगमॉल और amusement park की चकाचौंध से भी उसे कोई फर्क नहीं पड़ा । उसकी मुस्कान, उसका बचपना तो जैसे वहीं ‘कुटुम्ब’ में ही था । उसकी अम्मू की गोद में । काफी सोचने के बाद मैंने और लतिका ने एक निर्णय ले लिया । फोटो फ्रेम से लतिका ने विद्या की फोटो निकाल दी । अगली सुबह हम विद्या को लेकर सुशीला जी के पास गए । “ हमने बहुत कोशिश की । यकीन मानिये अपनी पूरी ममता के साथ मैंने विद्या को लाड-प्यार दिया । उसकी देखभाल करी । लेकिन विद्या की ज़िंदगी में आपकी कमी को पूरा नहीं कर पायी ।” कहते-कहते भावुक हो लतिका सुशीला जी के पास बैठ गयी । ”और शायद हम कभी आपकी जगह ले भी न पाएं । बेहतर है कि विद्या आपके साथ रहे क्यूंकि विद्या आपकी …” लतिका की बात पूरी सुने बिना सुशीला जी ने उसे बीच में ही रोक दिया । “नहीं…नहीं… ये तो अभी बच्ची है । इसमें भले बुरे की समझ कहाँ । इसका भविष्य आप लोगों के साथ ही है । आप इसे ले जाइए । मैं अपने दिल को समझा चुकी हूँ । ये भी समझ ही जायेगी । लेकिन मैं आपसे प्रार्थना करती हूँ कि आप इसे अपने पास ही रखें ।” हाथ जोड़ते हुए सुशीला जी ने बोला । उनका सिर झुका हुआ था । गोद में बैठी विद्या उनकी आँखों के आँसूं पोंछ रही थी ।

सुशीला जी के घुटनों के पास बैठ मैंने उनका हाथ पकड़ लिए । “हम दोनों निर्णय ले चुके हैं । विद्या पर पहला हक आपका है और हमेशा आपका ही रहेगा । इसलिए विद्या हमेशा आपके साथ ही रहेगी । लेकिन…” सुशीला जी के चेहरे को अपने हाथों से उठा उनकी आँखों में आँखें डाल मैंने कहा “विद्या को आपने जितना प्यार दिया है उसका एक हिस्सा भी क्या हम दोनों को मिल सकता है? क्या हम भी आपके साथ रह सकते हैं? आप मुझे और लतिका को adopt कर लीजिये ? क्या आप हमारी माँ बनेंगीं?” मैं पूरी तरह भावुक हो गया था । सुशीला जी की आँखों के आँसूं अब भी बह रहे थे लेकिन वो आँसूं ख़ुशी के थे । “माँ” लतिका ने हाथ पकड़ उन्हें गले से लगा लिया । इस पल को कैद करने के लिए मैंने माँ और उनकी गोद में बैठी विद्या की एक फोटो खींच ली । तभी विद्या ने इशारा कर कहा “पापा रुको… मम्मी आप भी आओ न हमारे साथ ।” विद्या के मुँह से यूँ मम्मी-पापा सुन ऐसा लगा जैसे दुनिया की सारी मीठी आवाजें एक साथ कान के पर्दे से होते हुयी दिल को झंकृत कर गयी । घर पहुँच उस खाली फ्रेम में विद्या ने अपनी और अम्मू की फोटो लगा दी । हमारी ‘HAPPY FAMILY’ या फिर हमारा ‘कुटुम्ब’ सच्चे अर्थों में अब पूरा हो गया था ।     

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