अगले जनम मोहे…

टिक टिक करती मेरी मशीनी धडकनें मुझे बता रही थी कि अगले 2 मिनट और 47 सेकेंड में सुबह के 5.30 बज जायेंगे । रात के सन्नाटे में जहाँ दुनिया रात भर खर्राटे ले रही थी वहीँ इस समय के इन्तज़ार में मैंने नींद को अपने आस-पास फटकने भी नहीं दिया था ।   आखिर मुझे, एक अलार्म घड़ी को, रोहन से किया वादा जो निभाना था ।   वो वादा जिसे निभाने के लिए ही मेरा जन्म हुआ है ।  

रोहन, जिसकी स्टडी टेबल ही मेरा स्थायी निवास है, कल रात कुछ डरा हुआ सा था ।  अधिकांशतः वीडियो गेम और कॉमिक्स में उलझा रहने वाला रोहन कल रात किताबों के ढेर में खोया हुआ था ।   परीक्षा कि तैयारी चल रही थी ।   अंतिम समय पर पढाई करना यूँ तो रोहन की पुरानी आदत थी लेकिन शायद इस बार पढाई के दवाब का प्रेशर-कुकर फटने की कगार पर था ।   तीन कप कॉफी और डेढ़ बोतल पानी खत्म हो चुके थे ।   पलंग के गुदगुदे गद्दे को त्याग कर कुर्सी पर बैठ पढाई की जा रही थी ।   धीमी-धीमी आवाज़ में गायत्री मंत्र चल रहा था ।   इतनी कोशिशों के बावजूद भी रात 12.17 पर उसे नींद की पहली झपकी आ ही गई ।   मुँह धोकर रोहन ने दुबारा पढ़ने की कोशिश जरूर करी लेकिन नाकामयाबी ही हाथ लगी ।   निद्रा देवी का नागपाश उसे तेजी से अपनी गिरफ्त में लिए जा रहा था । आखिरकार मुझे उठाकर रोहन ने मेरे कान उमेठने शुरू कर दिए ।   पहले 6.30 का अलार्म लगाया ।   फिर किताबों के ढेर की ओर दहशत भरी नज़रों से देख कुछ सोचा और अलार्म को 5.30 का कर दिया ।   मुझ से 5.30 बजे उठाने का वादा लेकर रोहन गहरी नींद में सो चुका था ।  

बस 10 सेकेंड और बचे हैं ।   पूरी रात के इन्तज़ार के बाद असली काम का समय आ गया है ।   ”एक बार रोहन उठ जाए उसके बाद चैन से सोऊँगी” यही सोचकर ठीक 5.30 बजे मैंने बांग देना शुरू कर दिया ।   54 सेकेंड चीखने के बाद रोहन के शरीर में कुछ हरकत हुयी ।  करवटें बदलते हुए उसने मेरी तरफ हाथ बढ़ाया ।   अपनी आँखें खोले बिना हाथो से ढूंढते हुए वो मेरे पास पहुँचा ।   उस पल ऐसा लगा कि धीमे से आँख खोल कर रोहन मुझे “थैंक-यू” बोलने वाला है लेकिन… अचानक से मेरे “स्नूज” बटन पर एक तमाचा मार कर रोहन ने मुझे 10 मिनट के लिए शांत करा दिया ।   मेरे सारे अंजर पंजर ढीले कर रोहन ने 10 मिनट की एक झूठी नींद चुरा ली थी ।   उसकी इस हरकत पर मुझे बड़ा गुस्सा आया ।   इंसान की सहूलियत के लिए हम मशीन क्या कुछ नहीं करते ।   बिना रुके, बिना थके दिन रात काम में लगे रहते हैं और बदले में ऐसा सलूक ।  एक बार को मन करा कि भाड़ में जाए रोहन की तैयारी और उसका पेपर ।   10 मिनट के बाद उसे उठाऊँगी ही नहीं ।   लेकिन फिर दूसरे ही पल मेरा मशीनी दिल जाग उठा ।   आखिर इंसान एहसान फरामोश हो सकता है लेकिन हम मशीनें अपने कर्त्तव्य से मुँह कैसे मोड सकती हैं ।    

10 मिनट बाद अपने दर्द और तकलीफों को भूल कर रोहन को उठाने की एक और कोशिश में मैं फिर चीखने लगी ।   कोई फर्क ना पड़ते देख मैंने आवाज़ बढ़ा दी ।  चीखते-चीखते मेरी सांसें उखाड़ने लगी लेकिन मजाल है कि उसके कानों पर जूँ भी रेंगी हो ।  अपनी बेबसी पर मुझे रोना सा आ रहा था ।    इस से पहले कि मैं कुछ और सोच या कर पाती, पीछे से किसी ने मेरा “स्टॉप” बटन दबा दिया ।   मुड़कर देखा तो रोहन की मम्मी खड़ी हुयी थी ।   उनकी आँखों में नींद और चेहरे पर गुस्सा साफ़ दिखाई दे रहा था ।   ”रोहन …अलार्म अपने उठने के लिए लगता है या हमारी नींद बर्बाद करने के लिए..” लगभग चीखते हुए मम्मी ने कहा ।   अपनी बात का कोई असर होता ना देख उनके गुस्से का पारा चढ गया ।   चादर खींचते हुए उन्होंने रोहन को एक तमाचा रसीद कर दिया ।   इस बार हडबडाने और करहाने की बारी रोहन की थी ।   मम्मी को सामने देख कर रोहन झटके से उठ बैठा ।   उसकी आँखों से नींद पूरी तरह गायब थी ।   

जिस काम के लिए मेरा जन्म हुआ है और पूरी कोशिश के बावजूद जिस काम को करने में मैं असफल रही वो मम्मी के एक तमाचे ने कर दिया ।   मम्मी की ऐसी ताकत के सामने नतमस्तक हो मुझे अपने जीवन पर शर्मिंदगी महसूस हो रही थी । अब तो बस प्रभु से यही प्रार्थना थी “अगले जनम मोहे मम्मी ही कीजो”

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8 Comments

  1. Avatar Swati

    Waahh! I can now got d reply once I snoozed but didn’t ring again..may b my alarm just harsh n kids van gone ..so a lesson for me that I never did snooze second time ever!!! And Mummy last lines just hilarious.. good story!!

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