Action Uncle

काफी देर से बैठा हुआ था लेकिन मेरी सोच को शब्द ही नहीं मिल रहे थे । सामने डायरी का खाली पेज था और उँगलियों के बीच घूमता पेन । दिमाग से वो किस्सा, वो बातें, निकलने का नाम ही नहीं ले रही थीं । लेकिन बात जब लिखने की आती तो समझ नहीं आ रहा था कि शुरुआत कहाँ से करूँ ? कई बार जीवन की छोटी-छोटी सी कुछ घटनाएं हमारी पारंपरिक सोच और समझदारी को झकझोर कर रख जाती हैं । मेरे जीवन की ऐसी ही एक घटना का नाम है “Action Uncle” ।

उस दिन हम Hogenakkal Falls देखने गए थे । चट्टानों के बीच कावेरी नदी का पानी और ऊपर से गिरते काफी सारे झरने । वहाँ की प्रसिद्ध टोकरीनुमा नाव में बैठ हम मनोरम दृश्यों के आनंद ले रहे थे । नाव चलाने के लिए नाविक चप्पू के दो थाप सीधे हाथ की तरफ मारता और फिर चप्पू से उल्टे हाथ की तरफ के पानी को चीरता । वो नाव आड़ी-तिरछी चलते हुए आगे बढ़ रही थी । जीवन की अड़चनों के उथल पुथल और उन्हें संतुलित करने की जद्दोजहद के बीच आगे चलती हमारी जिंदगी भी कुछ-कुछ उस नाव जैसी ही है । हमारे सामने ऊपर चट्टान से निकलता एक झरना था । नीचे गिरते पानी की तेज आवाज और आसपास उड़ते पानी के महीन छीटों की धुँध ने दृश्य को काफी सुंदर बना दिया था । नाविक झरने की तरफ नाव को लेकर जा रहा था । पानी में बढ़ती हुई हलचल के साथ नाव भी हिचकोले खा रही थी । झरने के ज्यादा पास जाने की मनाही थी इसलिए नाविक ने नाव को झरने से थोड़ा पहले ही वापस मोड़ दिया ।  हम पीछे मुड़कर अभी झरने को निहार ही रहे थे कि चप्पू को तिरछा कर लगातार एक ही दिशा में चलाते हुए नाविक ने नाव को गोल-गोल घुमाना शुरू कर दिया । हम जितना चिल्लाते वह चप्पू की चाल भी उतनी तेज कर देता । हिलती-डुलती और गोल घूमती नाव ऐसी जान पड़ रही थी जैसे नदी में भँवर आ गई हो ।

“बस भैया… रोक दो अब”  घूमती नाव में लगते डर के कारण मैंने नाव वाले को कहा तो फैमिली के बाकी लोग मुझे अनमने भाव से देखने लगे । शायद उन्हें घूमती नाव में मजा आ रहा था ।

“अरे आगे भी जाना है अभी… बहुत सारे झरने पड़ेंगे ।“ बात को संभालते और उनके मूड को Cheer Up करते हुए मैंने एक हाथ से नाव वाले को आगे चलने का इशारा कर दिया ।

आगे बढ़ने के साथ हमें कई नज़ारे दिखाई दिए । किनारे पर खड़े पेड़ों का पानी में हिलता हुआ प्रतिबिम्ब । अलग-अलग आकृतियों का आभास कराती आस पास की चट्टानें । एक टक निगाह गड़ाए मछली के आने का इंतजार करता वो बगुला । इन सब के बीच हमारा नाव वाला चप्पू की थाप के साथ ताल मिलाते हुए अपनी भाषा में हल्के-हल्के से कुछ गीत गुनगुना रहा था । वाकई सब कुछ कितना Unique था । इस दृश्य को अंदर तक महसूस करने के लिए मैंने अपनी आंखें बंद कर ली । अभी ज्यादा देर नहीं हुई होगी कि मेरी बेटी बोली

“पापा… वहाँ देखो”

दूर चट्टान पर खड़ा एक शख्स दिखाई दे रहा था । अजीबोगरीब से इशारे और हरकतें कर रहा था । शुरू में तो मुझे कोई पियक्कड़ या सरफिरा मालूम पड़ा । फिर हमारे चेहरे के प्रश्नों को भांपकर नाव वाला खुद ही बोला

“सर… वो एक्शन अंकल है ।”

 एक्शन अंकल… यह कैसा नाम हुआ? मन ही मन सोचते हुए मैंने नाव वाले से कुछ और पूछना चाहा लेकिन उसने पहले ही नाव को एक्शन अंकल की तरफ ही घुमा दिया ।

for representation purpose only

जैसे-जैसे नाव पास आती गई वैसे-वैसे उस शख्स का हुलिया और हाव-भाव भी समझ में आने लगे । सफेद बाल, चेहरे पर जोकर जैसा मेकअप, पुराना काला कोट, फटे जूतों से बाहर झाँकती उँगलियाँ, पास में रखी एक छड़ी और छैला । मेकअप के पर्दे की आड़ में छुपी उनकी उम्र का सही अंदाजा लगाना तो मुश्किल था पर 55 साल के पार तो पक्का रहे होंगे । हमें पास आता देख उनके हाथ पैर और तेजी से चलने लगे ।

हाथों को गोल-गोल घुमाते हुए वो कभी राजेश खन्ना जी की तरह ‘मेरे सपनों की रानी’ करते तो कभी झटके से पैरों को चलाते हुए मिथुन दा का ‘डिस्को डांसर’ । ऐसे ही कलाकारों के एक्शन करते बीच एक बार उन्होंने कोट की जेब में रखे चश्मे को घुमाते हुए रजनी अन्ना की तरह लगाने की कोशिश भी करी पर चश्मा हाथ से फिसल गया । लेकिन हताश हुए बिना उन्होंने थैले से निकाली लाल टोपी पहन ‘मेरा जूता है जापानी’ पर नाचना शुरू कर दिया । राज कपूर और चार्ली चैपलिन की नकल करते हुए एक्शन अंकल को मेरी बेटी बड़े गौर से देख रही थी । उसकी इस कौतूहलता को देख उन्होंने अपने थैले से वो जोकर वाली रंग बिरंगी नकली नाक निकालकर पहन ली और बंदरों की तरह आवाज करते हुए उछलने कूदने लगे । यह देख खिलखिलाकर हँसती हुई मेरी बेटी ने ताली बजा उनका भरपूर उत्साहवर्धन करा । आखिर में अपने दोनों हाथ फैला और गर्दन को झुका उन्होंने अपने शो का पटाक्षेप किया और अपनी लाल टोपी को उल्टा कर हमारी तरफ बढ़ा दिया ।

वैसे इस तरह का प्रदर्शन मैंने यूट्यूब पर वीडियो में देखा था । वह भी अधिकतर यूरोपियन देशों के पर्यटन स्थलों पर । माना अंकल के एक्शन उतने परफेक्ट नहीं थे फिर भी भारत के अंदर इस छोटी सी जगह पर यह प्रदर्शन मुझे काफी आश्चर्यजनक लगा । मन में काफी सारे सवाल थे लेकिन चिलचिलाती धूप और आगे जाने की जल्दी को देखते हुए मैंने जेब से कुछ रुपए निकाल मुट्ठी में दबाए और उनकी लाल टोपी में डाल दिए । हमारी नाव आगे की तरफ बढ़ गई ।

सबका ध्यान अब सामने दिखाई दे रहे बड़े-बड़े झरनों पर था । लेकिन मेरे दिमाग से एक्शन अंकल निकल ही नहीं रहे थे । मैं पीछे मुड़ उन्हें देखता रहा । अंकल चट्टान का सहारा ले धीरे-धीरे उस पर बैठ गए । जोकर की नाक और टोपी को दोबारा थैले में डाल पास पड़ी बोतल से पानी पीने लगे । अलग-अलग हीरो की एक्टिंग करते और हमें गुदगुदाते एक्शन अंकल के हावभाव अब थकान और बेबसी को उजागर कर रहे थे । यह देख मेरे मन की उत्कंठा बढ़ गई । मेरे अंदर का कहानीकार ढेरों सवाल कर रहा था । सवाल उनके जीवन की तकलीफों के बारे में, उनके एक्शन अंकल बनने की मजबूरी के बारे में, उनके परिवार के बारे में ।

हम भारतीय By Default काफी भावुक किस्म के होते हैं । मुझे भी उनकी गरीबी और उम्र के इस पड़ाव पर जीवन की मुश्किलों को देख दया आ गई । मैं यह महसूस करने की कोशिश कर रहा था कि चेहरे पर नकली मुस्कान चिपका दुनिया को खुशी देते वक्त उनके अंदर कैसा तूफान चलता होगा । इन सब सवालों के सही जवाब तो नहीं थे मेरे पास लेकिन मेरे दिमाग ने दर्द, संघर्ष और आँसुओं को जोड़कर उनकी एक काल्पनिक कहानी का ताना-बाना बुनना शुरू कर दिया था । खैर उस समय परिवार के साथ नाव में बैठे हुए इस पर ज्यादा विचार संभव नहीं था तो कहानी को थोड़ा विराम देते हुए मैं भी सबके साथ झरनों का आनंद लेने लगा ।

चट्टानों के ऊपर से गिरते बहुत सारे झरने, सूरज की रौशनी में चांदी सा चमकता पानी और सामने लाइन से खड़ी नावें । इन सब के बीच आसपास के लोग विभिन्न मुद्राओं में फोटो खिंचवा रहे थे । अब फोटो का भी एक अलग मसला हो चुका है । आजकल हम फोटो यादों को सहेजने के लिए नहीं बल्कि सोशल मीडिया के लिए खिंचवाते हैं । इस सोशल मीडिया का हम पर इतना भारी दबाव हो गया है कि अगर हमारे फोटो पर आठ-दस लोगों के अच्छे-अच्छे कमेंट ना जाएँ तो हमारा घूम कर आना सार्थक ही नहीं लगता । परिवार के दवाब में आकर मुझे भी इस परंपरा में शामिल होना पड़ा । कुछ फोटो खींचने और खिंचवाने के बाद हम वापस नाव में बैठ किनारे की ओर लौट लिए । किनारे से पहले मेरी पत्नी के विशेष आग्रह पर नाव वाले भैया ने हमें एक बार फिर चकरघिन्नी की तरह गोल-गोल घुमा दिया ।

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इस 3 घंटे की सैर में मिले तरह-तरह के अनुभवों ने हमारे दिल को आनंदित और तृप्त कर दिया था । लेकिन अब पेट भूख के कारण चीत्कार कर रहा था । आसपास के होटल और ढाबों की गूगल पर रेटिंग चेक करने के बाद हम एक रेस्टोरेंट पर पहुँच गए । अभी शाम के 6:00 ही बजे थे और डिनर मिलने का समय था 7:30  बजे । हमारे विनती करने पर मैनेजर 30 मिनट में खाना देने को तैयार हो गया । इस बीच हमने चाय और बिस्किट ऑर्डर कर दिए । चाय की चुस्कियों के बीच आसपास देखते समय मुझे ऐसा लगा जैसे पीछे की टेबल पर एक्शन अंकल बैठे हैं । हां… वो एक्शन अंकल ही थे । उनके चेहरे पर अब मेकअप नहीं था । उम्र की गहरी दरारें अब झुर्रियों के रूप में साफ दिखाई दे रही थीं । अगर पास में उनका थैला और छड़ी ना होते तो शायद मैं उन्हें पहचान ही नहीं पाता । उनकी सही उम्र मेरे पिछले अनुमान से कहीं अधिक होगी । पहले पहल तो विश्वास ही नहीं हुआ कि एक्शन अंकल यूँ सामने बैठे हैं । फिर लगा कि शायद ईश्वर इस कहानी को मेरी कल्पनाशीलता से नहीं बल्कि सच्चाई और तथ्यों से पूरा करवाना चाहते हैं । थोड़ी देर संकोच करने के बाद आखिरकार मैं उनके पास पहुँच गया ।

“नमस्ते अंकल… झरने के पास आपका शो देखा था । बहुत अच्छा लगा ।“

मेरी बात सुन उन्होंने मेरी तरफ देखा । एक मुस्कान के साथ गर्दन को हिलाया और फिर अपनी चाय में मगन हो गए । शायद वह बात करने के इच्छुक नहीं थे । लेकिन मेरी कहानी का सवाल था तो थोड़ा बेशर्म हो मैं उनके सामने की कुर्सी पर बैठ गया ।

“अंकल आप झरने पर रोज आते हैं?”

 “हाँ” मेरे सवाल का संक्षिप्त सा जवाब दे वो चुप हो गए । फिर थोड़ी देर की शांति के बाद उन्होंने कहा

“तकरीबन 3 साल से आ रहा हूँ ।”

अंकल के इस जवाब से मुझे हौंसला मिला । वो अब बात करने के मूड में दिख रहे थे ।

“3 साल से रोज… धूप और बारिश के में भी?”

 “जब टूरिस्ट आते हैं तो मैं भी आता हूं । “

“आपको एक्टिंग करने का शौक है क्या? मेरा मतलब ऐसे झरने के बीच में ये सब करना…”

मेरे इस अधूरे सवाल को वो समझ गए थे । वैसे भी हमारे देश में किसी उम्रदराज व्यक्ति को ऐसा करते देखने पर मन में यह सवाल आना स्वाभाविक है ।

“पहले एक छोटी सी फैक्ट्री में मजदूरी किया करता था । लेकिन बढ़ती उम्र के साथ वह काम करने की ताकत मुझमें खत्म होती गई । बाद में कुछ दिन लोगों के छोटे-मोटे काम भी करे । कभी कोई दया भाव से खाना दे देता था तो कोई भिखारी समझकर पैसे । जीवन की लाचारी मुझे हर दिन महसूस होती थी । फिर एक दिन हमारे गाँव के मेले में मैंने एक आदमी को अलग-अलग हीरो की एक्टिंग और उनकी आवाज में डायलॉग बोलते हुए देखा । वहाँ बैठे सारे लोग थोड़ी देर के लिए अपना दुख-दर्द भूल कर हँस रहे थे । मुझे यह सब देख कर बड़ा अच्छा लगा । एक ऐसा काम जिसमें आप किसी की मुस्कान का कारण बन सकते हो । सोचा मैं भी कर के देखता हूँ । उस दिने के बाद से शीशे के सामने खड़ा हो मैं भी वैसी ही एक्टिंग करने की कोशिश करने लगा । देखने में जितना सरल लग रहा था उतना था नहीं । शुरू में गली में खेलते बच्चों को मैं यह एक्शन करके दिखाया करता था । कोई मेरी मजाक बनाता था तो कोई तालियाँ बजाता था । वो बच्चे ही एक्शन करने में मेरी गलतियाँ बता देते थे और फोन पर मुझे अलग अलग हीरो के वीडियो दिखाया करते थे । वो वीडियो देखकर और कोशिश करते-करते मैं सीखता तो गया पर जगह-जगह जाकर यह सब करने और दिखाने की हिम्मत मेरे शरीर में नहीं थी । इसलिए मैंने झरने के पास वाली चट्टान को ही अपना मंच बना लिया । सही कहूँ तो रोज इतने सारे नए-नए लोगों को देखना, हल्की सी मुस्कुराहट लिए उनके चेहरों के भाव देखना मुझे अच्छा लगता है । हाँ कभी-कभी कोई मुझे पागल भी समझता है लेकिन मुझे फर्क नहीं पड़ता ।

एक जवाब में ही उन्होंने अपने एक्शन अंकल बनने की पूरी कहानी सुना दी । इस उम्र में अपने लिए एक नया लक्ष्य खोजना और लोगों के सोच की परवाह किए बिना लगातार कोशिश करते जाना । वाह… मुझे उनकी बातें सुन अंदर से बड़ा अच्छा महसूस हो रहा था । लेकिन मेरे सारे सवालों का जवाब मिलना अभी बाकी था ।

“अंकल आपकी फैमिली में कौन-कौन है?”

“कोई नहीं ।”

कोई नहीं !!! मैं सोचने लगा कि कैसा लगता होगा अंकल को । आप इतनी मेहनत कर घर पहुँचें और वहाँ कोई न मिले । अरे कोई तो हो बात सुनने के लिए, अपनी सुनाने के लिए, कभी कभार लड़ने-झगड़ने के लिए ।

“मतलब इस उम्र में आप बिल्कुल अकेले हो?” यह प्रश्न पूछते हुए मैं थोड़ा भावुक हो गया था ।

“वैसे खुद को बिल्कुल अकेला बोलना तो ईश्वर का अपमान होगा । वो देखता रहता है मुझे । जब भी मुझे दुख दर्द होता है तो वो दो हाथ भेज देता है मदद के लिए । कभी-कभी खाना खरीदने के लिए पैसे नहीं होते लेकिन उसने आज तक भूखा नहीं सुलाया । वह है मेरे साथ हर समय तो मैं अकेला कहाँ । मुझे विश्वास है कि मेरी अर्थी के लिए भी चार कंधों का इंतजाम वो कर ही देगा ।“

अंकल की कहानी में परेशानियों और आंसुओं की तलाश करते बीच उनका यह दार्शनिक सा जवाब मेरे लिए अप्रत्याशित था । छोटी-छोटी परेशानियाँ आने पर अक्सर ईश्वर से हम शिकायतें करने लग जाते हैं । हमारा भरोसा उठ जाता उस पर से । लेकिन अंकल का ईश्वर के प्रति ये पूर्ण समर्पण । क्या वाकई ये सब उनकी सच्चाई थी या वो मुझे सिर्फ शब्दों का ज्ञान पिला रहे थे? क्यूंकि मैं यहाँ उनकी गरीबी सुनने आया था । उनकी बेबसी सुनने आया था । कहानी में emotions ढूंढने आया था । और कहीं ना कहीं यह सब मिला भी मुझे । ‘गरीबी’, ‘लाचारी’, ‘मुश्किल’… सब थी अंकल की जिंदगी में । लेकिन उनकी बातों में ऐसा कोई दर्द ना था जो मैं कहानी में ठूँसना चाह रहा था । फिर मुझे लगा कि किसी अपरिचित के साथ अपने मन की व्यथा ऐसे कोई क्यूँ ही साझा करेगा । मैंने अपना हाथ बढ़ा उनके हाथ पर रख दिया । उनकी आँखों में देखते हुए इस बार मैंने सीधा प्रश्न किया ।

“लेकिन रात में अकेले बैठे हुए आपको कभी इन परेशानियों पर झुँझलाहट नहीं आती ? ऊपर वाले पर गुस्सा नहीं आता कि जिंदगी में इतने दर्द क्यों लिखे हैं?”

मेरे इस प्रश्न पर अंकल शांत हो गए । इस बार उनकी आँखें भी हल्की सी नम हो गई थी । मुझे लगा कि आखिरकार ‘i hit the bulls eye’. वो थोड़ी देर तक सोचते रहे ।

“आता है… मेरा सब्र भी कभी-कभी छलक जाता है । अपने दुःख और दूसरों के सुख देख मेरा मन भी बीच-बीच में विचलित हो जाता है । जब अंदर के प्रश्नों का कोई जवाब नहीं सूझता तो मैं शमशान में जाकर बैठ जाता हूँ । वहाँ मेरे हर सवाल का जवाब मिल जाता है । वो एक मंजिल है जहाँ पहुँचकर जीवन की सारी परेशानियाँ खत्म होती है । सारे सुख भी वहाँ पहुँचने से पहले आपका साथ छोड़ देते हैं । उस जगह पर मुझे ‘अपनी तकलीफ और दूसरों से जलन’ ये सब मिथ्या लगने लगते हैं । समझ जाता हूँ कि सबके जीवन की गाड़ी का आखिरी स्टेशन यही है । अब चाहे गाड़ी को घसीट-घसीट कर आगे बढ़ाओ या फिर जो परिस्थिति है उसमें शामिल होकर ।

अंकल के इस जवाब ने मेरी सोच को ही पलट कर रख दिया । मुझे समझ नहीं आ रहा था कि अब क्या तो बोलूँ और क्या पूछूँ । अंकल के चेहरे पर संतोष था । स्वयं की सोच पर नियंत्रण था । वह अपने आज में लीन थे । ना बीते हुए कल का कोई पछतावा और ना आने वाले कल की कोई चिंता । अंकल कोई भगवा वस्त्र धारी संत तो नहीं थे लेकिन जीवन के असली सत्य को पूर्णता से उन्होंने अपनाया हुआ था ।

“ पापा…  खाना आ गया ।” अंकल की बातों को समझने की कोशिश के बीच मेरी बेटी ने पास आकर मुझे कहा । सामने अंकल को देख वह मेरे पीछे छुप गई । बिना मेकअप के उसने उन्हें पहचाना नहीं होगा । बेटी को देख अंकल ने अपने थैले से वही रंग बिरंगी नकली नाथ निकाली और उसे लगाकर उछलने लगे । ये देख बेटी भी अब मेरे पीछे से बाहर निकल खिलखिलाने लगी । थोड़ी देर बेटी को यूँ गुदगुदा कर वो कुर्सी से उठ बाहर की ओर चल दिए । अभी गेट तक पहुँचे भी नहीं थे कि मुड़कर फिर मेरे पास आए

“वैसे जीवन में एक बात का दुःख तो है मुझे । कितनी भी प्रैक्टिस कर लूँ लेकिन रजनीकांत के एक्शन मुझसे अभी भी नहीं हो पाते ।“ उनकी ये बात सुन मेरे चेहरे पर मुस्कान आ गई । मेरी आँखें उनका तब तक पीछा करती रहीं जब तक वो ओझल नहीं हो गए । मेरी कहानी पूरी हो चुकी थी । लेकिन अब ये कहानी मेरे शब्दों की सीमा से परे थी । मुझे शक था कि क्या इस कहानी को मैं सही भावनाओं और उसके मर्म के साथ कागज़ पर उकेर पाउँगा? वरना एक्शन अंकल कहीं एक काल्पनिक पात्र बन कर न रह जाएँ । जो भी हो पर रास्ते भर मेरे दिमाग में अंकल की कही बातें और एक गाना बार-बार घूमता रहा

जीवन चलने का नाम… चलते रहो सुबह शाम

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