मुंबई महानगर के एक झोपड़ पट्टी में शिवानी अपने पिता के साथ रहती थी । माँ को गुजरे सालों हो चुके थे और अब पिता भी काफी दिनों से बीमार चल रहे थे । शिवानी बहुत ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं थी, अपनी थोड़ी बहुत योग्यता और मिलनसार स्वभाव के कारण पास के ही एक नर्सरी स्कूल में उसे ‘आया’ की नौकरी मिल गयी थी। जो थोड़े बहुत पैसे मिलते, उससे दो जून की रोटी का बंदोबस्त कर पाना ही बड़ा मुश्किल होता था । फिर भी पिता का इलाज कराने के लिए जो भी संभव था वो हर कोशिश शिवानी कर रही थी । लेकिन सरकारी अस्पताल की लंबी लंबी लाइन में इलाज का इंतज़ार करते-करते अब उनकी जीने की चाह और शिवानी की उम्मीद दोनों कमजोर पड़ते जा रहे थे । आखिरकार इलाज के अभाव में एक दिन शिवानी के पिता हमेशा के लिए चिर निद्रा में सो गए । शिवानी पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा । बीमार ही सही पर सिर पर पिता का साया उसे हिम्मत देता था । पिता के जाने के बाद शिवानी दुनिया में पूरी तरह अकेली हो गई ।
अभी वह खुद को संभाल पाती कि तभी शिवानी के घर के बगल वाली जमीन किसी बिल्डर ने खरीद ली, और उसमें इमारत खड़ा करने लगा । बिल्डर को जैसे ही पता चला कि शिवानी बिल्कुल अकेली है, उसकी नजरें शिवानी की छोटी सी जमीन के प्रति टेढी होने लगी । शिवानी की जमीन को मिलाने से उसकी ईमारत का प्रवेश द्वार अधिक चोड़ा और भव्य बन सकता था । इस से उसकी बिल्डिंग की कीमत बहुत बढ़ जाती । ज्यादा पैसे कमाने के लालच में उसने शिवानी पर दवाब बनाना शुरू कर दिया । एक दिन शिवानी घर में खाना पका रही थी। तभी वह बिल्डर शिवानी के घर में दाखिल हुआ और सीधे अपने गुंडों के साथ शिवानी के पास आ धमका। शिवानी सहम गई। शिवानी से बड़ी ही बदतमीजी से पेश आने लगा । उसने शिवानी को अपनी जमीन उसे बेचने को कहा । “अरे बात तो ऐसे कर रही हो जैसे ये घर तुम से मुफ्त में मांग रहे हैं । पैसे मिल तो रहे हैं । चुप चाप पैसे पकड़ो और घर छोड़ दो । ” धमकाते हुए बिल्डर ने कहा। बिल्डर शिवानी को जमीन के बदले जो पैसे अदा कर रहा था वह बहुत ही कम थे। शिवानी बहुत डर गई थी । वो कुछ कहना चाह रही थी, मगर उसके कण्ठों को मानो किसी ने जोर से दबा रखा हो और आवाज बाहर ही नहीं निकल पा रही हो । उस दिन के बाद बिल्डर आए दिन शिवानी को परेशान करने लगा, उसे धमकाने लगा ।
ये बात शिवानी ने मोहल्ले के अन्य प्रभावशाली लोगों से कही, मगर वो भी बिल्डर से दुश्मनी मोल नहीं लेना चाहते थे । हार मानकर शिवानी ने पुलिस का दरवाजा खटखटाया,मगर अफ़सोस पुलिस तो बिल्डर की ही खिदमतगार निकली । “बेटा… पुलिस में यूँ शिकायत का कोई फायदा नहीं… वो बड़े लोग हैं । हमारी मानो तो दे दो वो घर । वैसे भी अब तुम्हारा यहाँ हैं कौन? चलो हम बात कर के थोड़े पैसे और दिलवा देंगे ।” चारों तरफ से निराश शिवानी को जब कुछ नहीं सूझा तो, वह चारपाई पर मुंह के बल लेट गई और तकिए पर सर रखकर सामने दीवार पर टंगे अपने पिता के फोटो को निहारने लगी । उसकी आँखों से डब-डब आँसू बहने लगे । उसके पीछे तो पहले ही कोई नहीं था । पिता का सहारा चला गया, और फिर अब ये घर भी… वह जाए तो कहाँ जाए । दिन भर रोते-रोते शाम को शिवानी ने अचानक अपना दुपट्टा उठाया और बेसुध होकर घर से निकल पड़ी । आगे जाकर एक बिल्डिंग, जिस पर काम अभी चल रहा था,की सबसे ऊंची मंज़िल पर पहुंच गई । “रोज़ के इस डर और खौफ की ज़िंदगी से छुटकारा पाने का यही एक तरीका बचा था” । वहां पहुंचकर वह अभी बिल्डिंग से छलांग लगाने की सोच ही रही थी, कि तभी पीछे से आवाज आई । “ये तो कायरों का तरीका है अपनी परेशानियों से भागने का। और आप कायर तो नहीं लगती ।” बिल्डिंग पर काम कर रहे एक युवक ने कहा । मैं रुक गयी। “ बात सही थी…मैं कायर कैसे हो सकती हूँ? पापा कहते थे कि मैं उनकी झांसी की रानी हूँ ।” आत्महत्या का विचार त्याग मैंने उस युवक को अपनी परेशानी बतायी । वो उस बिल्डर और उसकी ताक़त से वाकिफ था । “उस से अकेले पंगा नहीं लिया जा सकता क्यूंकि पुलिस और प्रशासन दोनों तक उसकी पहुँच है । लेकिन अगर तुम्हें लोगों का समर्थन मिले तो शायद कुछ हो सकता है ।” उसकी कही इस बात से मैं निराश हो गयी क्यूंकि मेरे समर्थन में कोई नहीं था । “अगर आस-पास के लोग साथ नहीं दे रहे तो अपनी बात को इन्टरनेट पर कहो। फेसबुक, whatsapp पर अपने मन की बात सब तक पहुँचाओ । वहाँ तुम्हें 10-20 नहीं बल्कि हजार्रों-लाखों लोग मिलेंगे” ? उसकी इस बात से शिवानी के चेहरे पर अचानक आशा और उम्मीद की नई किरण दिखाई देने लगी। वह झट से वहाँ से मुड़ी और घर की तरफ चल दी।

घर जाकर उसने पिता का संदूक खोला, पिता ने शिवानी के लिए दो सोने के कंगन खरीद रखे थे । शिवानी के लिए शादी से ज्यादा जरूरी अपने सर पर छत को बचाना था । वो उन दोनों कंगन को लेकर पास की ज्वैलरी शॉप पर गई । वहाँ उसने दोनों कंगनों को बेच दिया और फौरन थोड़ी दूर पर एक फ़ोन की दुकान से एक मोबाइल फ़ोन खरीदा । घर आकर उस युवक की मदद से अपना एक फेसबुक अकाउंट बनाया । धीरे-धीरे अपने परिचितों और उनके रिश्तेदारों और दोस्तों को मित्र बनाते हुए वो बहुत से लोगों और कई ग्रुप से जुडती गयी। । उसने यह सतर्कता बरती कि उससे जुड़े अधिकांश लोग और ग्रुप वहीं मुंबई शहर से ताल्लुक रखते थे । फिर उसने बिल्डर द्वारा उस पर की जा रही ज्यादतियों को फेसबुक पर शेयर करना और मदद की अपील करना शुरु कर दिया । लेकिन सब फिल्मी कहानियों में जितना आसान लगता है उतना था नहीं । शुरू में कोई ख़ास सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं आई । उल्टे कुछ लोगों ने उसकी बात का मजाक बनाया । गंदे-गंदे कमेंट लिखे । वहीँ उस बिल्डर को जब शिवानी की पहल का पता लगा तो उसके गुंडों ने घर आ कर उसका सारा सामान तहस नहस कर दिया । सरेआम सबके सामने उसे धमकी भी दी “अगर और ज्यादा होशियारी दिखाई तो घर के साथ जान से भी हाथ धो बैठोगी । एक हफ्ते में मकान खाली कर दो वरना…” गुंडों की ये धमकी आस पास खड़े लोगों ने सुनी लेकिन किसी के मुँह से कुछ नहीं निकला । मगर शिवानी अब डरने वाली नहीं थी । उसने तो बस जीतने की ठान ली थी।

इस हमले का चुपके से बनाया गया विडियो उसने फेसबुक पर डाल दिया । धीरे-धीरे सोशल मीडिया पर शिवानी को सपोर्ट करने वालों की संख्या बढ़ने लगी । लोग उसकी पोस्ट को शेयर करने लगे । बिल्डर की हरकत का वो विडियो जल्द ही वायरल हो गया । शिवानी की तरह ही उस बिल्डर के शिकार बाकी लोग भी अब खुल कर सामने आने लगे । शिवानी को मिल रहा समर्थन हर रोज बढ़ता जा रहा था । बिल्डर के खिलाफ फेसबुक पर शुरू हुआ आन्दोलन अब सड़कों और राजनीतिक गलियारों तक भी पहुँच रहा था । बात इतनी हाईलाइट हो गई थी, कि पुलिस के आला अफसरों पर कार्यवाही का दबाव पड़ने लगा । आखिरकार बिल्डर को शिवानी से अपनी ज्यादतियों की माफी मांगनी पड़ी । एक-एक कर इन्टरनेट की आभासी लगने वाली दुनिया पर इकट्ठे हुए लोगों और उनके समर्थन से शिवानी अपने सर की छत को बचाने में कामयाब हुई ।
[सम्पादन : सौरभ माहेश्वरी ]