Dad’s Gift

आधी रात को गाड़ी 130 की रफ़्तार से भागी जा रही थी और उस से कहीं तेज़ भाग रही थी मेरे दिल की धड़कन । अनहोनी की आशंका के बीच उम्मीद की छोटी सी किरण अभी भी फड़फड़ा रही थी । कुछ देर पहले आये फ़ोन पर बोला था कि सारांश की बाइक का एक्सीडेंट हो गया है । फ़ोन पर बताया बाइक का नंबर भी सही था । “ एक्सीडेंट… What rubbish…अरे अभी 2-3 घंटे पहले ही तो सारांश से बात हुयी थी । बोल रहा था कि दोस्तों के साथ पार्टी में है और घर आते-आते देर हो जायेगी । अक्सर Saturday रात को वो देर से ही घर आता है । वैसे भी वो डिस्को, जहां पर उसकी पार्टी चल रही थी, घर के पास ही है तो मुझे कुछ ज्यादा चिंता भी नहीं थी । लेकिन… फ़ोन पर तो बोला था कि एक्सीडेंट गुडगाँव एक्सप्रेस-वे पर हुआ है । घर से 40-45 किलोमीटर दूर वहाँ क्यूँ जाएगा वो ? कहीं सच में सारांश का एक्सीडेंट? नहीं नहीं…सब झूठ है ये । हो सकता है कि उसका कोई दोस्त उसकी बाइक ले कर निकल गया हो । वैसे भी उसकी नयी बाइक देख उसके दोस्त बड़े excited हो गए थे । या फिर उसने अपने दोस्तों के साथ मिल कोई मजाक किया होगा । आजकल की ये पीढ़ी अपने pranks के लिए कुछ भी करती हैं । हाँ ऐसा ही हुआ होगा । वैसे भी वो मुझ से कुछ ज्यादा ही friendly है । अपने पापा को ऐसे डरा हुआ देख खिलखिला कर हँस देगा वो । लेकिन ऐसा मजाक करने के लिए आज उसे नहीं छोडूंगा मैं । “

दिल को समझाने की इसी उधेड़बुन में महरौली बाईपास के आगे पुलिस की गाड़ी और सायरन बजाती हुयी एम्बुलेंस खड़ी दिखी । कार सड़क के कोने में लगा कर इंजन बंद कर दिया । बाहर उतरने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था । सहमी सी आँखें कार के dashboard पर लगे गणपति पर गढ़ी हुयी थी । इस से पहले कि मेरा डरा हुआ दिमाग भगवान से कुछ मांग पाता किसी ने खिड़की के कांच को खटखटाया । “ सादानी जी…वहाँ पर ।“ खिड़की खोलने पर बाहर खड़े हवलदार ने मुझे एम्बुलेंस की तरफ आने का इशारा किया । कांपते क़दमों से बाहर उतर कर देखा तो सामने सारांश की बाइक बुरी तरह टूटी हुयी पड़ी हुयी थी । ऐसा लगा कि दिल ने धड़कना बंद कर दिया । दिमाग चिंतनशून्य हो गया । खुद को लगभग घसीटते हुए एम्बुलेंस के पास पहुँचा । उम्मीद की आखिरी किरण को हकीकत की निर्मम आंधी ने आखिरकार बुझा ही दिया । खून से लथपथ सारांश की बॉडी एम्बुलेंस में रखी हुयी थी । बॉडी…हाँ सब यही बोल रहे थे । कुछ देर पहले तक मेरी जिंदगी, मेरा बेटा सारांश अब बस एक बॉडी भर रह गया था । एक बॉडी… जिसकी आँखों में न कोई चमक थी और चेहरे पर कोई मुस्कान । शिनाख्त… अरे मैं कैसे कह दूं कि सामने रखा ये हाड़-मांस का मृत शरीर मेरा सारांश है । “नहीं ये मेरा सारांश नहीं है… नहीं है ये मेरा सारांश ।”    

अभी 5 दिन पहले ही उसका 18 वाँ जन्मदिन था । कितना खुश था वो अपनी मनपसंद बाइक पा कर । मुझे गले लगा कर कितनी देर उछलता रहा था वो और सुमित्रा हर बार की तरह तमतमा रही थी । उसका वही घिसा पिटा डायलोग “ क्या जरूरत थी इतनी महंगी बाइक की? पहले से ही कम बिगड़ा हुआ है जो बिना सोचे समझे इसकी हर ख्वाहिश पूरी किये जा रहे हो । उसके ऊपर रात-रात भर कहाँ रहता है, क्या करता है न तुम कभी पूछते और न मुझे पूछने देते हो ।” मैं हर बार की तरह चुप रहा । “ विक्रम… मैं तुम से कुछ बोल रही हूँ…न इसे पैसों की कोई value है और न भविष्य की कोई चिंता । उसके ऊपर तुम इसे समझाने की बजाय और शह दे रहे हो ।”  मेरे कुछ बोलने से पहले सारांश की बात ने सुमित्रा के गुस्से को कम करने की जगह उल्टा आग में घी डालने का काम कर दिया । “cool down माँ…पापा शहर के स्टील किंग हैं और मैं हूँ उनका एकलौता शहजादा । अब शहजादे तो थोड़े बिगड़े हुए होते ही हैं । और पापा के होते हुए मुझे पैसों की क्या चिंता । Right Pa…” बोलते हुए उसने अपना हाथ मेरी तरफ बढ़ा दिया । बाप-बेटे की उस high five के बीच हम कितनी देर तक हँसते रहे । “ इतना लाड़ भी अच्छा नहीं विक्रम । जितना अभी हँस रहे हो न देख लेना कहीं एक दिन उतना ही रोना न पड़ जाए ” गुस्से में बड़बड़ाती सुमित्रा घर के अन्दर चली गयी । उसके गुस्से से बेफिक्र “मेरे शहजादे” सारांश को  गले लगाने के लिए मैंने अपनी बाहें फैला दी लेकिन सारांश तो मेरी तरफ आने की बजाय मुझ से दूर जा रहा था । बेटा… मेरे पास आ बेटा… चीखते हुए मैंने उसे बुलाया कि तभी किसी ने मुझे झकझोर कर अतीत की सुनहरी यादों से दुःखद वर्तमान में खींच कर पटक दिया ।

पुलिस सारांश की बॉडी को पोस्टमॉर्टेम के लिए लेकर जा चुकी थी । सड़क के बीच में पड़ी बाइक को हटा कर कोने में कर दिया गया था । मेरे पास खून के छीटों से सनी बाइक की नंबर प्लेट पर बड़ा-बड़ा लिख था “DAD’S GIFT” । कलेजा फट गया । हाँ ये मेरा ही तो तोहफा था । दौलत के ढेर पर बैठ कर उसकी हर जायज और नाजायज़ मांग को बिना सोचे समझे पूरा करना । सुमित्रा सही थी, आज मेरे अति के लाड प्यार ने मेरे शहजादे को मौत का ये तोहफा और मुझे जिंदगी भर का गम दे दिया । मैं कातिल हूँ सारांश का । कातिल… दिमाग में गूँजते इस शब्द के साथ पीछे न्यूज़ चैनल वालों की हल्की सी आवाज़ आ रही थी । “नशे में धुत चार बाइक सवारों का ओवरस्पीडिंग  के दौरान गुडगाँव एक्सप्रेस वे पर एक्सीडेंट, दो की मौके पर ही मौत, एक गंभीर रूप से घायल ।”         

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