समर्पित प्रेम

दोपहर के भोजन के बाद सुस्ती मिटाने मैं बिस्तर पर लेटा ही था कि, अचानक छाती में दर्द होने लगा । पहले लगा कि शायद एसिडिटी हो गयी होगी लेकिन दर्द धीरे-धीरे तीक्ष्ण हो रहा था । दिमाग थोड़ा डर गया ।  … कहीं ये हार्ट की तकलीफ तो नहीं है…? वैसे भी विपरीत परिस्थितियों में मनुष्य का मन नकारात्मक विचार पहले लाता है । पलंग से उतर मैं धीरे-धीरे चल आगे वाले बैठक के कमरे में पहुँच गया । परिवार के सारे लोग मोबाइल में व्यस्त थे… कोई कान में ईयरफोन लगाये फिल्म देख रहा था तो किसी की उंगलियाँ फ़ोन पर तबले की थाप की तरह चल रही थी । पत्नी के पास जा कर मैंने कहा “कविता छाती में दर्द हो रहा है ।” लेकिन फ़ोन से बिना आँखें हटाये कविता ने कहा “अरे वही एसिडिटी का दर्द होगा । अलमारी मैं पड़ा चूरन ले लो ।” कविता की इस बेपरवाही से मैं थोड़ा दुखी हो गया । “रोज से आज दर्द कुछ ज्यादा जान पड़ता है । सोच रहा हूँ एक बार डाक्टर को दिखा आता हूँ ।” कहते हुए मैं दरवाज़े की तरफ चल दिया । मुझे लगा कि डाक्टर का नाम सुन शायद कोई मेरे साथ चलने के लिए बोलेगा लेकिन … “ठीक है… मगर थोड़ा संभलकर जाना… और कोई काम हो तो फोन करना ” पीछे से आती कविता की इस आवाज़ ने मेरा वो भ्रम भी तोड़ दिया ।

मैं एक्टिवा की चाबी लेकर पार्किंग में पहुंचा । शरीर पसीने से लथपथ हुए जा रहा था । बाहर इतनी गर्मी तो नहीं थी फिर ये पसीने । इसी उधेड़बुन में मैंने एक्टिवा के सेल्फ स्टार्ट वाला बटन दबाया । किर्र…किर्र की आवाज़ के साथ इंजन स्टार्ट करने की एक कोशिश जरूर हुयी लेकिन नाकाम । फिर याद आया कि नवीन को बैटरी चेंज करवाने की बोला था । लगता है लाडसाहब को फ़ोन की दुनिया से निकल यह करवाने की फुर्सत ही नहीं मिली होगी । एक्टिवा को मेन स्टैंड पर लगा स्टार्ट पेडल पर एक किक मारी । लेकिन सीने में होते दर्द और बैचेनी के कारण किक सही से नहीं लगी । अपने आप को थोड़ा संयत करते हुए दूसरी किक मार ही रहा था कि उसी वक़्त हमारे और अपार्टमेंट में कई घरों में काम करने वाला ध्रुव साईकिल ले कर आया ।  साइकिल को ताला मारते ही  मेरे सामने आ खड़ा हो गया ।  “क्यों साहब, एक्टिवा चालू नहीं हो रहा है ?” ध्रुव के इस सवाल का जवाब मैंने न में गर्दन हिला दे दिया ।

“आपकी तबीयत भी ठीक नहीं लगती साहब… इतना पसीना क्यों आ रहा है आपको? मेरी स्थिति देखते हुए उसने मुझे स्कूटर के पास से हटा दिया “साहब… आप रहने दो… मैं किक मार के इसे चालू कर देता हूँ ।” ध्रुव ने एक ही किक मार कर एक्टिवा चालू कर दिया, “साहब… आप क्या अकेले ही जा रहे हो ?” स्कूटर को रेस देते हुए ध्रुव का पूछा यह सवाल मुझे दुखी कर गया । उदास मन से हाँ बोल मैंने ध्रुव से स्कूटर लेने के लिए हाथ बढाया ही था कि “ नहीं साहब…ऎसी तबीयत में आप अकेले मत जाओ । मैं ले कर चलता हूँ आपको । आप पीछे बैठ जाओ” थोड़ा आश्चर्यचकित हो मैंने ध्रुव से पूछा “तुझे एक्टिवा चलाना आता है ?”  “साहब, चिंता छोड़कर बैठ जाओ…  मुझे गाडी चलाना भी आता है । ड्राइविंग लाइसेंस भी है “ कहते हुए ध्रुव मुझे पीछे की सीट पर बिठा हॉस्पिटल की तरफ बढ़ लिया ।

पास के एक अस्पताल में पहुंच ध्रुव मुझे स्कूटर के पास खड़ा कर दौड़कर अन्दर से एक व्हीलचेयर ले आया । “साहब,अब चलना नहीं, इस कुर्सी पर बैठ जाओ…” इसी दौरान ध्रुव के मोबाइल पर लगातार घंटियाँ बज रही थीं । मैं समझ गया कि ध्रुव के फ्लैट पर न पहुँचने के कारण सब बैचेन हो रहे होंगे । आखिर काम कौन करेगा । ध्रुव ने आखिर थक कर किसी को कह दिया “मैडम कुछ इमरजेंसी है तो आज नहीं आ आ सकता…बाकी लोगों को भी बता दीजियेगा प्लीज ।”ध्रुव डाक्टर के जैसे ही व्यवहार कर रहा था । उसे बगैर पूछे मालूम हो गया था कि मुझे हार्ट की तकलीफ हो रही है । लिफ्ट से बाहर निकल व्हील चेयर ले वो आईसीयू की तरफ लेकर चल दिया…

डाक्टरों की एक टीम वहाँ दौरे पर थी । मेरी तकलीफ सुनकर सब टेस्ट शीघ्र ही किये । डाक्टर ने कहा – “आप समय पर पहुंच गए हैं, और बहुत अच्छा हुआ कि आप व्हीलचेयर का उपयोग करते हुए यहाँ तक आये । ।t’s a major heart attack । अब किसी भी प्रकार की राह देखना आपके लिए हानिकारक है । इसलिए बिना देर किए हमें हार्ट का ऑपरेशन कर आपके ब्लोकेज जल्द ही दूर करने होंगे ।” इस फार्म पर आप के साइन की ज़रूरत है और बाकी चीजें आप हेल्प डेस्क पर जा कम्पलीट कर दीजिये । डाक्टर ने ध्रुव को फॉर्म देते हुए कहा तो ध्रुव थोड़ा घबरा मेरी तरफ देखने लगा । ध्रुव की तरफ अपना क्रेडिट कार्ड बढ़ाते हुए थकी हुयी आवाज़ में मैंने कहा “बेटे, दस्तखत करने आते हैं न तुझे?”

 “साहब, इतनी बड़ी जवाबदेही मुझ पर न रखो…” ध्रुव भावुक हो बोला । “बेटे… तुम्हारी मेरे प्रति कोई जवाबदेही नहीं है । तुम्हारे साथ भले ही लहू का संबंध नहीं है, फिर भी आज बगैर कहे तुमने मेरी जो सहायता करी है वह जवाबदेही तो हकीकत में मेरे परिवार की थी । एक और जवाबदेही पूरी कर दो बेटा । मैं नीचे लिखकर साइन कर दूंगा कि अगर मुझे कुछ भी होगा तो इसमें पूरी जवाबदेही मेरी है, ध्रुव ने सिर्फ मेरे कहने पर ही हस्ताक्षर किये हैं, और हाँ, घर पर फोन लगा सबको खबर कर दो…” मेरे बात खत्म होने से पहले ही  ध्रुव का मोबाइल फ़ोन बजा । शांति से सामने वाले की बात सुनने के बाद ध्रुव बोला  “मैडम, आपको पगार काटने का हो तो काट लेना, निकालने का हो तो निकाल दो, मगर अभी ऑपरेशन शुरु होने के पहले अस्पताल पहुंच जाओ । हाँ मैडम, मैं साहब को अस्पताल लेकर आया हूँ, उनकी तबियत बहुत खराब है । डाक्टर ने ऑपरेशन की तैयारी कर ली है आप सब जल्दी आ जाओ …”

“बेटा घर से फोन था…?” मेरे पूछने पर हेल्प डेस्क की तरफ जाते ध्रुव ने बस इतना कहा “ हाँ साहब” । मैंने मन में सोचा, कविता तुम किसकी पगार काटने की बात कर रही हो और किस को निकालने की बात कर रही हो ? ऑपरेशन बेड पर लेटे हुए यही सोच कर मेरी आँखें डबडबा गयीं । 

ऑपरेशन के बाद जब मुझे होश में आया तो मेरे सामने मेरा पूरा परिवार सर झुकाए खड़ा था । लेकिन एक चेहरा नदारद था । आंखों में आंसू लिए मैंने पूछा “ध्रुव कहां है  ?” “वो अभी ही छुट्टी लेकर गांव गया है । कहता था, उसके पिताजी हार्ट अटैक में गुज़र गऐ हैं,15 दिन के बाद ही आयेगा…” कविता के यह बताने पर मेरा कलेजा मानो फट गया । अब मुझे समझ में आया… उस दिन वो मुझ में अपने पिताजी देख रहा था । हे प्रभु, मुझे बचाकर आपने उसके बाप को उठा लिया !

मेरा पूरा परिवार हाथ जोड़कर , मूक नतमस्तक माफी मांग रहा था…एक मोबाइल की लत ,मुझे अपने परिवार से कितना दूर ले कर जा सकती थी वह परिवार देख रहा था…डाक्टर ने आकर कहा, सब से पहले यह बताइए ध्रुव आप के क्या लगते हैं ? सच कहूं तो आपका ये नया जीवन उन्हीं की देन है । मैंने कहा – “डाक्टर साहब,  कुछ संबंधों के नाम या गहराई तक न जाएं,तो ही बेहतर होगा,उससे संबंध की गरिमा बनी   रहेगी…बस मैं इतना ही कहूँगा कि, वो आपात स्थिति में मेरे लिए फरिश्ता बन कर आया था !”

“ हमको माफ करो पापा … जो फर्ज़ हमारा था, वह ध्रुव ने पूरा किया । यह हमारे लिए शर्मनाक है । अब से ऐसी भूल भविष्य में कभी भी नहीं होगी…” कह नवीन ने मेरे पैर छू लिए । “बेटा,जवाबदेही और नसीहत लोगों को देने के लिए ही होती है…अब रही मोबाइल की बात… तो एक निर्जीव खिलौने ने आज जीवित खिलौने को गुलाम कर दिया है । समय आ गया है कि उसका मर्यादित उपयोग करना सीखने का नहीं तो… परिवार, समाज और राष्ट्र को उसके गंभीर परिणाम भुगतने पडेंगे और उसकी कीमत चुकाने को तैयार रहना पड़ेगा…

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