अपने हाथ पैर कि सलामती के लिए कहानी कि शुरुआत मैं ही मेरा ये बता देना जरूरी है कि
“इस कहानी के सभी पात्र व घटनाएं काल्पनिक हैं”
वरना पता लगे कि यहाँ किसी की भावनाएं आहत हुयीं और वहाँ मैं ही हताहत हो लिया ।

1) इन्तेहाँ हो गयी इंतज़ार की ::
जहाँ सिगरेट का धुआँ कमरे को अपनी आगोश में ले चुका था वहीँ पलंग पर ओंधे लेटे हुए मैं अपनी उँगलियों के बीच मचलती सिगरेट से उसकी आखिरी साँसे छीन रहा था । शाम से ही कमरे से बाहर जाने का मन नहीं हो रहा था । पिछले 2 घंटे में कम से कम 10-12 बार तो दीवार पर लटकी उस घड़ी को देख लिया होगा । रात के 11.35 हो रहे थे । बस 25 मिनट और । 25 मिनट के बाद तारीख बदल कर 18 फरवरी हो जायेगी । 18 फरवरी …पिछले 10 महीने से मैंने इस तारीख का इन्तज़ार किया है । तारीख मेरे जीवन की सबसे कड़वी यादों की । तारीख मेरी मुहब्बत के इनकार की । तारीख अब मेरे बदले की ।

2) शर्मा जी का लड़का ::
हमेशा से लड़कों के स्कूल में पढ़ने वाला मैं 12 वीं क्लास तक का वो टॉपर लड़का था जिसकी मिसाल मोहल्ले के सभी माता पिता अपने बच्चों को तो दिया करते थे लेकिन वही बच्चे मुझ जैसे किताबी कीड़े से दोस्ती करने में कतराते थे । घर, स्कूल और टयूशन । मेरी जिंदगी त्रिभुज के इन तीन कोनों के इर्द गिर्द ही घूम रही थी । न कोई नाईट आउट , न कोई पार्टी । खैर जो भी हों पर किताबों में घुसे रहने का उस समय मुझे एक फायदा तो जरूर मिला । पहले प्रयास में ही राज्य के नामी इंजीनियरिंग कालेज में मेरा दाखिला हो गया । जहाँ घर वालों को सब लोग बधाइयां दे रहे थे वहीं मुझमें घबराहट और रोमांच की MIXED FEELINGS आ रही थीं । स्थिति अंडे से निकले चिड़िया के उस बच्चे सी थी जिसे एक तरफ तो गिरने का डर सता रहा था तो वहीँ पंख फैला कर खुले आसमान को चूमने की हसरत भी थी ।
शुरुआत में पंख फडफडाने में दिक्कतें तो जरूर आई । हास्टल का माहौल, रैगिंग और सब कुछ खुद सँभालने की जिम्मेदारी । धीरे-धीरे ही सही लेकिन पटरी पर दौड़ती जिंदगी की रफ़्तार अब बढ़ने लगी थी । मैं गिरते-पड़ते इस दुनिया की social skills सीख रहा था साथ ही होशियार होने के कारण जल्द ही टीचर्स कि नज़र में भी मुझे एक उचित स्थान मिल चुका था । मतलब सब ठीक ठाक सा ही था । लेकिन इस ठीक ठाक सी चलती जिंदगी में उस दिन कुछ ऐसी हलचल हुयी जैसे शांत ठहरे हुए पानी में किसी ने कंकड मार दिया हो । कुछ ऐसा जिसने मेरी दशा और दिशा दोनों को ही बदल दिया ।

3) ये दोस्ती ::
लाइब्रेरी के कोने की सीट पर बैठे कुछ पढते हुए मुझे एक मीठी सी आवाज़ सुनाई दी ” हैलो ध्रुव ।” पीछे मुड कर देखा तो ऋचा के साथ मनीष और स्वाति खड़े हुए थे । हैलो का रिप्लाई देने के बाद वे तीनों मेरे पास आकर बैठ गए । ” sorry to disturb you… क्या तुम हमें असाइनमेंट की ये प्रॉब्लम समझा सकते हों ?” असाइनमेंट पेपर दिखाते हुए ऋचा ने पूछा । वैसे वो जिस असाइनमेंट की बात कर रही थी वो मुझे काफी अच्छे से आता था । हॉस्टल में कितने लड़के तो रूम पर आकर असाइनमेंट मुझ से कॉपी कर के गए थे । लेकिन ऋचा के पूछने पर जाने क्यूँ अंदर एक हौला सा बैठ गया । हौला समझते हैं ना आप? अरे वही जिसमें पेट के अंदर तितलियाँ सी उड़ने लगती हैं, हाथ पैर ढीले से पड़ जाते हैं । समस्या असाइनमेंट समझाने की नहीं थी, समस्या थी ऋचा से यूँ आमने सामने बात करने की । लड़कियों से बात करने में हमेशा मेरी हालत खराब हो जाती थी । उस समय मुझे पिताजी पर बड़ा गुस्सा आ रहा था । अगर को-एड में पढाया होता तो आज ये हाल ना होता । खैर बचने का कोई रास्ता नहीं था तो 2 घूँट पानी पीकर अपने आप को संयत किया और मनीष कि तरफ देखते हुए उन्हें SOLUTION समझा दिया । मुस्कुराते चेहरे के साथ ऋचा को वो “ थैंक यू “ उस रात मेरे दिमाग में घूमता रहा । बात शायद आई-गयी हो जाती लेकिन वो तीनों KINEMATICS में कुछ कमजोर थे और संयोग से मैं कुछ ज्यादा ही अच्छा । अक्सर अब कुछ पूछने के या लाइब्रेरी में साथ पढ़ने के बहाने हम लोगों की मुलाकात होती रहती थी । साथ वक्त बिताने के कारण अब ऋचा और स्वाति से बात करने की मेरी झिझक कम होने लगी थी । ये जरूर था कि उस ग्रुप में सबसे ज्यादा टांग मेरी ही खींची जाती थी । जो भी हो पर कुल मिलाकर हम चारों काफी अच्छे दोस्त बन चुके थे ।

4) पहला पहला प्यार है ::
इंजीनियरिंग कालेज का वो उन्मुक्त वातावरण था या नयी-नयी दोस्ती, कारण जो भी रहा हो लेकिन जिंदगी ने नए बदलाव लेने शुरू कर दिए थे । आगे की सीट पर बैठ कर क्लास में बहती ज्ञान की गंगा को अपनी नोटबुक में समेटने वाला मैं अब 4th row में दोस्तों के साथ बैठ कर खिलखिलाता हुआ दिखाई दे जाता था । जींस और टी-शर्ट ने घर से 2 सूटकेस भर कर लाये पैंट और शर्ट कि जगह ले ली थी । क्लास के बाद चाय कि टपरी पर बैठ कर कुमार शानू के गाने गुनगुनना मुझे अच्छा लग रहा था । इन बदलावों की बारिश में दिल का एक कोना अपनी अलग ही खिचड़ी पका रहा था । दिमाग ने बहुत समझाया लेकिन आपको तो पता ही है कि “दिल उल्लू का पट्ठा है ” । लाइब्रेरी में पढते वक्त नज़रें चुराकर ऋचा को देखना मैंने कब शुरू किया मुझे पता ही नहीं लगा । उसका वो उँगलियों के बीच पेन को घुमाना, छोटे बड़े हर जोक पर खुल कर हंसना, जिंदगी को अपने पैर कि ठोकर पर रख कर जीने वाला अंदाज़ । आय…हाय… । प्यार का पौधा मेरे अंदर अंकुरित होने लगा था ।
स्वाति से पता चला कि ऋचा के स्कूल वाले बोयफ़्रेंड से हाल ही में उसका ब्रेकअप हो गया । ऋचा इसी बात को लेकर कुछ दिनों से दुखी थी । लेकिन इंसानी फितरत तो देखिये “ किसी का दुःख किसी और की खुशी होती है ।” इस ब्रेकअप में मुझे अपने लिए एक मौका दिखाई दिया । हिंदी फिल्मों से मुझे इतना तो समझ में आया ही था कि प्यार की मजबूत ईमारत के लिए दोस्ती की नींव गहरी होनी चाहिए । अरे भाई प्यार के बादशाह शाहरुख ने भी तो कहा था “ प्यार दोस्ती है ” । तो ऋचा के साथ समय बिताने के अब मैं तरीके ढूँढने लगा । मेरी पूरी कोशिश रहती थी कि ऋचा मेरे साथ comfortable रहे । किसी ना किसी बहाने से उसकी पसंदीदा चाकलेट देना, अपने होस्टल के अजीबोगरीब किस्से सुना कर उसे हँसाना और सबसे जरूरी, जरूरत पड़ने पर उसके साथ शौपिंग पर जाना । लड़कियों की शौपिंग थोड़ा मुश्किल काम जरूर है पर मेरे एक ज्ञानी मित्र ने बताया था कि शौपिंग लड़कियों के stress burst करने का सबसे कारगर तरीका है । उस समय अक्सर मेरे होठों पर एक ही सरगम तैरती रहती थी
“पहला नशा-पहला खुमां, नया प्यार है नया इंतज़ां । ”
5) तूने जो न कहा ::
लेकिन कहते हैं न कि अगर खुशी ज्यादा जाहिर होने लगे तो उसे नज़र लग जाती है । फर्स्ट ईअर के मेरे अच्छे रिजल्ट के कारण मुझे इंजीनियरिंग की दूसरी ब्रांच में प्रमोट कर दिया. हम दोनों की क्लास, सब्जेक्ट और असाइनमेंट्स… सब अलग हो गए । इन्हीं सब के सहारे तो ऋचा के साथ लंबा समय बिताने का मौका मिलता था । फिर भी नए सेमेस्टर के पहले 2-3 हफ्ते तो इतना पता नहीं चला । हाँ weekdays पर ज्यादा नहीं मिल पाते थे लेकिन weekends पर मस्ती, घूमना फिरना, बातें करना । लेकिन जैसे जैसे असाइनमेंट्स और मिड टर्म एग्जाम का दवाब बढ़ने लगा, मैं ग्रुप में अलग थलग पड़ता गया । मेरे बहुत कोशिश करने के बावजूद भी ऋचा से न अब मुलाकातें हो पा रही थी और न ही फ़ोन पर बातें । क्लास के लिए आते जाते बस हाय-हेल्लो हो पाता था । ऋचा से न मिल पाने की उत्कंठा अब मुझे विचलित करने लगी थी । क्लास में भी मेरा मन नहीं लग रहा था । कई बार अपनी क्लास बंक कर मैं उसकी क्लास के बाहर बैठ उसका इंतज़ार किया करता था । नतीजा यह हुआ कि उस सेमेस्टर मेरी performance तत्कालीन अमेरिकी अर्थव्यवस्था की तरह धडाम हो गयी । डर के मारे एक्स्ट्रा कोर्स का बहाना बना मैं सेमेस्टर ब्रेक में घर ही नहीं गया । बस दिमाग में एक ही बात थी “ऋचा के वापस आने पर उसे सब बोल दूंगा” । दिमाग डरा हुआ था कि अगर उसने न बोल दिया तो लेकिन ये साला over positive दिल सुन ने को तैयार ही नहीं था । उसके साथ बिताये हर पल में मुझे ऐसा लगता था कि वो भी मुझे पसंद करती है ।

6) अच्छा सिला दिया ::
आखिरकार हिम्मत जुटा कर उस दिन tea-cafe पर मौका देख मैंने बोल ही दिया “Richa… । really like you” । “मतलब… ओये कहीं तू मुझे love you बोलने की कोशिश तो नहीं कर रहा” ऋचा हंस पड़ी “पागल हो गया है क्या?” उसे लगा कि शायद मैं मजाक कर रहा हूँ लेकिन मुझे अपने घुटनों के बल बैठता हुआ देख उसके चेहरे के भाव बदल गए । मुझे हाथ पकड़ उठाते हुए उसने बोला “देख ध्रुव don’t do this. Just leave It.” ऋचा को ऐसे देख जब उसका हाथ पकड़ मैंने दुबारा कुछ कहने की कोशिश की तो उसने अपना हाथ झटके से छुडा लिया । “how dare you dhruv…” जोर से चीखते हुए उसने बोला. “मुझे नहीं पता था कि तेरे दिमाग में यह सब चल रहा है ।” उसकी गुस्से में चीखती आवाज़ को सुन आस पास के लोग हमारी तरफ देखने लगे । मैं डर गया । उसे समझाने की कोशिश की लेकिन … “। have no interest in your love and now onwards not in your friendship. Don’t embarrass me and don’t call me ”गुस्से में तमतमाती ऋचा होस्टल की तरफ चली गयी । आस पास के लोगों का हंसता हुआ चेहरा मुझे गाल पर पड़े तमाचे जैसा लग रहा था । मैं चिंतनशून्य स्थिती में वहीं बैठा रहा । मनीष मेरे कंधे पर हाथ रख काफी देर खड़ा रहा । शायद उसके पास भी बोलने को कोई अल्फाज़ नहीं थे ।

7) जग सूना सूना लागे ::
मेरी single sided प्रेम कहानी के breakup के बाद क्या करूँ कुछ समझ नहीं आ रहा था । ऋचा ने अपनी हर social media प्रोफाइल पर मुझे block कर दिया । दिमाग में गुस्सा, दिल में दर्द और आँखों में आँसूं । शायद दिल का टूटना इसे ही बोलते होंगे । अगले दो दिन मैं अपने कमरे सी बाहर ही नहीं निकला । ऋचा से जुड़ी बातें बार बार यादों के दरवाजे पर दस्तक दे रही थीं । क्या हमारे बीच में सिर्फ एक दोस्ती थी । असाइनमेंट्स और मार्क्स के मतलब की दोस्ती । अब मैं वैसे भी उसके किसी काम का नहीं रहा तो भाड़ में गयी दोस्ती भी… और वो मुझ पर इस तरह क्यूँ चीखी? How dare she insult me like this infront of everybody? सारा कॉलेज मेरे नाम के wattsapp जोक भेज रहा होगा । उस से जुड़ी अब सारी यादें मुझे जहर लग रही थी । कल तक चेहरे पर मुस्कान बिखेरने वाला ऋचा का ख्याल मेरी आँखों में खून बन कर तैर रहा था । सच ही कहा है किसी ने “नाकाम इश्क में इंसान खून के आँसूं रोता है ।”

8) सुन रहा है न तू ::
मनीष की आवाज़ से मेरी नींद टूटी । कुछ देर के लिए ही सही लेकिन सोते हुए मैं यह सब कुछ भूल गया था । काश इंसान हमेशा सपनों की दुनिया में ही रह सकता । लेकिन आँख खुलते ही कमबख्त फिर वही भयानक वास्तविकता के बादलों ने दिमाग को घेर लिया । “ दो दिन से कुछ खाया नहीं है तूने… शरीर में से भी बदबू मार रही है । साले मजनू बनना है क्या तुझे” डांटते हुए मनीष ने कहा । “ चल हाथ मुँह धो… थोड़ी देर बाहर चलते हैं ।” मेरे कुछ न बोलने पर उसने मेरा हाथ पकड़ पलंग से उठा दिया । मेरे न चाहते हुए भी वो मुझे जबरदस्ती बाहर ले गया । “ भैया एक सिगरेट देना “ एक हाथ में चाय पकडे मैंने टपरी वाले से बोला तो मनीष मेरी तरफ भोंचक्का देखता रह गया । सबको पता था कि मैं नशे की सभी चीजों से दूर रहता हूँ । कॉलेज के फर्स्ट इयर में भी साथ के यार दोस्तों की बार बार कहने के बावजूद मैंने इन सब चीजों को कभी हाथ नहीं लगाया । लेकिन जाने क्यूँ मुझे लगा कि ऋचा को जेहन से निकालने के लिए आज यह नशा ही मेरे काम आएगा । शुरुआत में तो मुझे सिगरेट पीते ही चक्कर आने लगते थे लेकिन धीरे-धीरे मुझे आदत सी हो गयी । उल्टा सिगरेट के नशे में मुझे अच्छा लग रहा था । उस दिन ऋचा सामने से आ रही थी । मेरे हाथ में सिगरेट थी । मुझे पता था कि ऋचा को सिगरेट पीने वालों से सख्त नफरत है । हम दोनों के बीच इतना सब हो जाने के बावजूद उस पल लगा कि मुझे यूँ सिगरेट पीता देख शायद उसे पछतावा हो । शायद हमारी दोस्ती फिर से … लेकिन वो जालिम ऐसे नज़र अंदाज़ कर निकल गयी जैसे न उसके जीवन में मेरी कभी कोई जगह थी और न होगी ।

9) तुझे भुला दिया ::
मेरी नफरत अपने चरम पर थी । जब दोस्ती मेरी, प्यार मेरा , feelings भी मेरी तो वो इन्हें कैसे छोड़ सकती है? इन्हें छोड़ने का हक भी मेरा है । सोच लिया कि दुबारा प्यार करूँगा । बेइन्तेहाँ प्यार । और फिर उसी तरह छोड़ दूंगा जैसे ऋचा ने मुझे छोड़ दिया । “अबे पगलाए गए हो क्या? ये क्या नया पचड़ा पालने की सोच रहे हो? और किस से प्यार करोगे बे तुम?” मनीष चिल्ला रहा था लेकिन उसकी आवाज़ मेरे कानों तक नहीं पहुच रही थी । मुझे तो अपने हाथ में सुलगती सिगरेट में ऋचा दिखाई दे रही थी ।
सिगरेट का नशा मुझे ऋचा के साथ बिताये पलों जैसा लगता था । हल्का-हल्का सा दिमाग जैसे सारी चिंता-फ़िक्र काफूर हो गयी हों । ऋचा के साथ न सही लेकिन धीरे धीरे मेरा ये प्यार परवान चढ़े जा रहा था । शुरुआत में एक दिन की 4-5 सिगरेट से आगे बढ़ दिन की 12-15 सिगरेट पीने लगा था । इस नए प्यार के लिए दोस्तों से उधारी लेना भी शुरू कर दिया था । होठों का कालापन बढ़ता जा रहा था तो वहीँ दिमाग की एकाग्रता शिथिल हो रही थी । मनीष ने बहुत समझाया लेकिन मेरी भी जिद थी । इस प्यार को इन्तेहाँ तक ले कर जाऊँगा और फिर 18 फरवरी को वैसे ही छोड़ दूंगा जैसे ऋचा ने मुझे छोड़ा था ।
18 फरवरी आने में अब कुछ ही मिनट बाक़ी बचे थे । पैकेट से एक और सिगरेट निकाल कर लाइटर से जला ली । धीरे से एक कश खींचा । मेरे बदले की बुझती हुयी आग होठों और नाक से धुंआ बन निकल रही थी । घड़ी की बढती हुयी सुइयों के साथ मुझे अपनी जीत नज़र आ रही थी । मेरे फेंफड़ों और साँसों में बस चुके इस प्यार को छोड़ आज उन पुरानी यादों से मैं हमेशा के लिए आजाद हो जाऊंगा । अलार्म की आवाज़ के साथ घड़ी ने 12 बजने का ऐलान किया ।अलार्म को बंद कर मैंने उस आधी बची सिगरेट को अपने पैरों तले मसल दिया । पास में रखे सिगरेट के पैकेट को बाथरूम में फ्लश कर दिया । बस लाइटर रह गया था । उसे अपनी जीत के यादगार के रूप में सहेज अपनी जेब में डाल लिया । वापस आ मैं बिस्तर में धंस गया । दिल खुश था । न उसमें अब ऋचा थी और न ही सिगरेट । ऐसा लग रहा था जैसे सब नए सिरे से शुरू हो रहा हो ।

10) पहला नशा पहला खुमां ::
अगले 2-3 घंटे बिस्तर पर करवटें लेता रहा । शुरू का हल्का-हल्का सा सर दर्द अब भयानक रूप ले चुका था । ऐसा लग रहा था जैसे कोई अन्दर से हथोड़े बजा रहा हों । 2 बोतल पानी पीने के बावजूद भी गला सूखा जा रहा था । हाथ पांव ढीले से पड़ रहे थे । मुझे पता था कि यह सिगरेट की तलब है लेकिन अपने आप को काबू में करते हुए तकिये से सर को दबा दुबारा बिस्तर पर लेट गया । आधे घंटे में स्थिति और बदतर हो गयी । मुझ से अब और बर्दाश्त नहीं हो रहा था ।
आधी नींद में उठे विजय ने मुझे यूँ बेहाल स्थिति में अपने दरवाजे पर देखा तो वो डर गया । इस से पहले वो कुछ बोलता या पूछता, मैंने उसकी स्टडी टेबल पर रखी सिगरेट की डिब्बी से एक सिगरेट निकाल ली । लाइटर… मेरी जीत के उस यादगार को अपने जेब से निकालकर सिगरेट सुलगा एक लंबा काश अपने अन्दर खीच लिया । आधी सिगरेट ख़त्म होते होते सर दर्द कम होने लगा था । शरीर फिर से हल्का-हल्का महसूस कर रहा था । चेहरे की कसती हुयी नसें भी ढीली पड़ने लगी थीं । सिगरेट का पूरा पैकेट उठा विजय को “thanks” बोलते हुए मैं उसके कमरे से निकल लिया । हॉस्टल के कॉरिडोर में एक और लंबा सा कश खींचा । नफरत अब प्यार में बदल रही थी । आज बहुत दिनों बाद मेरे लबों पर फिर वही गाना थिरक रहा था
“पहला नशा-पहला खुमां, नया प्यार है नया इंतज़ां ।”